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________________ उपाध्याययशोविजयविरचित अंतराय कयौं. धर्म सांभलवा दीधो नही. एहवो प्रांणीने आवी लोभ वलगो. लोभनो वाहरो, जात छोडें समुद्र तरे, पर्वत चढ़े, माणस पंचेंद्रीनी घात करें, देवने निदे. गुरुने निंदे, माता पिताने गाल दें, पोतानो पेट भरी खाइ सकें नहीं, रात्रि समये ऊंध आवें नहीं, आर्ते पड्यौ, जिहां तिहां माथु घालतो फिरें, एहवो लोभ काठीयो के. लागो. खिण मात्रमा वीस विमासण करे. लोभ दुष्ट छई. मुनिराजें जीत्यौ मणी, रत्न हीरा, झवेर प्रमुख कांकग सम जाण्या, एहवा लोभना वाह्या प्राणी च्यार गतिमें पोतानो खजानो लूंटी दलद्री कीधा. ते धर्मनो अंतराय कीधौ एहवो लोभ काठीयनो जोरो प्रबल छ. // 8 // 9. भय काठीयो. वळी एपिण काठीयाने जीती मन दृढाव करी श्री जिनमार्ग, धर्म सांभले छे एतले पोहराजा. सूता ऊठाडी बे हाथ जोडीने चाडीयो बोल्यो हे गजा ! किसी निद्रामें सूतो छ अने सूतानो माल चोर लेइ जाई ते वासते राजा होइ ते जागता भला. एतले मोहराजा आलस मोडी बोल्या, अरे पापी चाडीया ! धुं स्युं कह छे, तिवारे चाडीयो बोल्यो - अहो महागजजी एक माहरी वात सांमलो, जे तुमारी आंण चिहुं खुंटमें प्रवर्ती. पिण एक तुमारी आंण श्रीजिनराजना नगरमें तुमारी आंण प्रवर्तति नथी. जे जिनराजना फोजदार दरीखां नोकरी बेठा छे अने समता पटगणी गाई छई ने भावना नाटक करे छई अने शंवर मादल बजाडे छई. संसारी जीव छै ते घरबार छोडीने साधु फोजदार पासैं बईठा छ, धर्मध्यांन करे छई. सामायक पोसानो व्यापार करे ,, तुमारो देश ऊजड थस्यै, पछे तुमनें खातर में कुण आणस्य, पछे, च्यार गतिमें कुण जास्य, एतला वास्ते सेवक हाथ जोडी कहे छे के--तो आप असवारी कगे नहींतर तुमारो फोजदार कोई बलीष्ट हुइ तेहुने मोकलो, तिवारें मोहराजाई मंछ मरोडी, व्यासी उमराव साहमुं जोयो, तिवारे भयनामी उमराव बोल्यो-महाराजेश्वर ! मुझने हुकम फरमावो, ज्यु हुं तुमारी जीत करी आयु, तिवारे मोहराजाई कडां मोतीसर पाव बगस्यौ पछी कहेवा लागा जे जाओ तुम्ही श्रीजिनराजना ऊंबगव पासे जई जेतला आपणा लोक हुई तेहुनें लेई लावो, तिवारें घोडे असवारी करी, बगतर पाखर पेहरी, मस्तके कलम टोप म्हेली, हाथमा सेल लेई, घोडो दोडावतो '2 मुनिगज देसना दे छई जिहां घणा माणस बेठा छै तिहां आवी कहेवा लागो-अरे पापीयो ! ईहां स्युं कगे छो? तुमने मोहराजा बोलावे छई, जो नहीं आवो तो तुम्हाग मस्तक ए सेल थकी वेधस्यु. एतले सर्वजन बीहना, भय 1. 2 અંકથી ઢોટાવતો શબ્દ બે વાર વાંચવાને સંકેત સૂચવે છે.
SR No.004308
Book TitleNavgranthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages320
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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