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________________ उपाध्याययशोविजयविरचित 1 आलस काठीयो (चोर) एक चोर आवै तिवारें लूगडां सर्व लेइं जायै दलद्री करी मेले, तिम ए जीवनि केडै तेरे 13 काठीया चोर वलगा छई ते धर्म करवा न दीये, तेहमाहि पहिलो चोर 'आलस' नामा काठीयो भावी वलगो; जिवारें गुरु पासें जावानुं करे, एतलामैं काल कहितां काल आवी पोहचें / ए पहिलो चौर // 1 // 2. मोह काठीयो जिम तिम करीनै आलप्स परहरीनै गुरु पासै आवी वेसै धर्म करवानुं मन थयु, एतलामें मोहराजाइं जाण्यु जे एतो जइ पोहतो, तिवारें 'मोह' काठीयाने मोकल्यो, तिवारे 'मोह' काठीयो आव्यो, तिवारे नानां छोकरां आवी वलगां, तिवारें छोकरां कहवा लागां, उपासरे जावा नहीं दोजीई, देहरें जावा नहीं दीजीइं, धर्म करवा नहीं दे / तुमे धर्म करस्यो तो अमे रोइस्युं, आडइ करस्युं, छाती कूटस्युं, तिवारें घर-कुटंबना मोह आगल धर्म करी सक्यो नहीं // ए बीजो काठीयौ // 2 // 3. निद्रा काठीयो जिम तिम करीनि बीजा काठीयानै जीत्यो, तिवारे गुरु पासे आव्यो / तिवारे धर्म सांभलवाने लागो / तिवारे मोह राजाई जाण्यु जे बेइं काठोयाने जीती धर्म सांभलीने सुषीयो थास्ये, हुतो एहनें. नरक-तीर्य चनो गते पोहचाडवो छै. तिवारे त्रीजो 'निद्रा' काठीयो चोर 'मोह' राजानो उबराब बरोबरीनो तेहने मोइराजा हाथ जोडीने कहता हवा, रे भाइ ! आलस मोहने जीतीने, ए प्रांण जिनराजना उबराव पासें धर्मकर छई, सांभळे छ, ति वासते तुमे जइंनि एहनई वप्त करौं, निम धर्म न करे, सुषी थाई नही, ते सांभलइंस्यै तो धर्मनो प्रतीत(ति) आवस्यै जो प्रतीत आवस्यै तौ मजीठ रंग लागे, नही लागे एतला वास्ते तुमे तिहां जइनें एहीने वस्य करो, तिवारे मोह राजाने त्रिण सलाम करीने 'निद्रा'नांमा काठीयो एकसासे दोडयो जिहां भव्य प्राणी वांण सांभले छे तिहां आव्या, 'प्रचलाप्रचला' नामें आवी, काठीयो सरीरगढ--कोट में आवी पेठो। असंष्याता प्रदेसे दर्शनावरणी कर्म मोहे मरोड सर्पनी परे दीधी, तिणि आंष मींचाई, गई, जड परवस थयो. पांच इंद्रोना क्षयोपसम रोक्या, तेतले चेतना मुझांणी, कल्पनाजाल में भूलो पड्यो, मार्ग लाधे नही. जिम मद पीधो होइ ते परवस होई, मृग भूलो जिम वनमें पडयो हुई, नइं कोई दिसनी घबर पड़े नही, जिम त्रिदोषीयाने षबर न पडई, तिम परवस थयो, निद्राना नीसांण वाजवा लागा, गढ सरीरमें नाकथी धार वाजवा लागो, जिम मृतकनी परै दीसवा लागो, जालमें बाकोर पाडवा लागो, उघमैं बकवा लागो, परेवम थयो. एहवो भव्य 1. एक प्रकारनी निद्रा /
SR No.004308
Book TitleNavgranthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashodevsuri
PublisherYashobharti Jain Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages320
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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