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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 2 २-श्रमण-परम्परा की एकसूत्रता और उसके हेतु 35 व्रत श्रमण-परम्परा में व्रत का बहुत महत्त्व रहा है। उसके आधार पर सभी मनुष्य तीन भागों में विभक्त किए गए हैं-बाल, पंडित और बाल-पंडित / जिसके कोई व्रत नहीं होता, वह 'बाल' कहलाता है। जो महाव्रतों को स्वीकार करता है, वह 'पंडित' कहलाता है और जो अणुव्रतों को स्वीकार करता है अर्थात् व्रती भी होता है और अव्रती भी, वह 'बाल-पंडित' कहलाता है।' ___ भगवान् महावीर ने साधु के लिए पाँच महाव्रत और रात्रि-भोजन-विरमण-व्रत का विधान किया / पाँच महाव्रत ये हैं (1) अहिंसा। . (2) सत्य। (3) अस्तेय / (4) ब्रह्मचर्य।. (5) अपरिग्रह / श्रावक के लिए बारह व्रतों की व्यवस्था की / ' उनमें पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत हैं / पाँच अणुव्रत, ये हैं (1) स्थूल प्राणातिपात-विरति / / (2) स्थूल मृपावाद-विरति / दत्तादान-विरति / (4) स्वदार-संतोष। (5) इच्छा-परिमाण / सात शिक्षा-व्रत ये हैं (1) दिग-व्रत / .. . (2) उपभोग-परिभोग परिमाण / (3) अनर्थ-दण्ड-विरति / (4) सामायिक / (5) देशावकाशिक / (6) पौषध / (7) अतिथि-संविभाग। १-सूत्रकृताङ्ग, 2 / 2 / २-उपासक दशा, 1112 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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