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________________ 32 . उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन गोशालक और पूरणकश्यप आजीवक-सम्प्रदाय के आचार्य गोशालक के विषय में दो मान्यताएं प्रचलित हैं। श्वेताम्बर-मान्यता के अनुसार वह भगवान् महावीर का शिष्य था और दिगम्बर-मान्यता के अनुसार वह पार्श्व की शिष्य-परम्परा में था। ___ मंखलीपुत्र गोशालक ने सर्वानुभूति और सुनक्षत्र---इन दोनों निर्ग्रन्थों को अपनी तेजोलेश्या से जला डाला, तब भगवान् महावीर ने कहा-"गोशालक ! मैंने तुम्हें प्रवजित किया, बहुश्रुत किया और तुम आज मेरे ही साथ इस प्रकार का मिथ्या आचरण कर रहे हो, यह तुम्हारे लिए उचित नहीं है / "1 इसका आशय स्पष्ट है कि गोशालक भगवान् महावीर के पास प्रवजित हुआ था। छह वर्ष तक भगवान के साथ रहा और उसके बाद वह आजीवक-संघ का आचार्य बन गया। उस समय उसके साथ भगवान् पार्श्व के छह शिष्य सम्मिलित हुए। दिगम्बर-मान्यता के अनुसार मश्करी गोशालक और पूरणकश्यप भगवान् महावीर के प्रथम समवसरण (धर्म-परिच्छेद) में विद्यमान थे। वे दोनों पार्श्वनाथ के प्रशिष्य थे। उस परिषद् में इन्द्रभूति गौतम आए। भगवान् महावीर की ध्वनि का क्षरण हुआ। मश्करी गोशालक रुष्ट होकर चला गया / उसने सोचा-बहुत आश्चर्य की बात है, ग्यारह अंगों (शास्त्रों) को धारण करने वाला मैं परिषद् में विद्यमान था फिर भी भगवान् की ध्वनि का क्षरण नहीं हुआ। मुझे उसके योग्य नहीं समझा गया। यह इन्द्रभूति गौतम वेदपाठी है। अंगों को नहीं जानता फिर भी उसके आने पर भगवान् की ध्वनि का क्षरण हुआ। उसे उसके योग्य समझा गया। इससे लगता है कि ज्ञान का कोई मूल्य नहीं है। अज्ञान ही श्रेष्ठ है। उसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस प्रकार वह अज्ञानवादी बन गया। ____ श्वेताम्बर और दिगम्बर मान्यताओं में भेद होने पर भी इसमें कोई मतभेद नहीं है कि गोशालक का सम्बन्ध श्रमण-परम्परा के मूल उद्गम से था। आजीवक-सम्प्रदाय गोशालक से पहले भी था। वह उसका प्रवर्तक नहीं था / उस सम्प्रदाय का मूल-स्रोत भी प्राचीन श्रमण-परम्परा से भिन्न नहीं है। जैन-श्रमणों और आजीवकों की तपस्या पद्धति १-भगवती, 15 // तुम मए चेव पव्वाविए जाव मए चेव बहुस्सुई कए, ममं चेव मिच्छं विप्पडियन्ने तं मा एवं गोसाल? २-वही, 15 / ३-दर्शनसार, 176-179 / 4-History and Doctrines of the Ajivikas, p. 98.
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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