________________ ___455 खण्ड 2, प्रकरण : 6 तुलनात्मक अध्ययन 455 (5) जो लोकेषणा से विरत है, जिसने स्वाद को जीत लिया है, जो स्त्रियों में आसक्त नहीं होता, (6) जो सम्मान पा कर गर्व नहीं करता, (7) जो तिरस्कार पा कर खिन्न नहीं होता, (8) जिसने सम्पूर्ण प्राणियों को अभयदान दे दिया है, (e) जो अनासक्त है, आकाश की तरह निर्लेप है, (10) जो किसी भी वस्तु को अपनी नहीं मानता, (11) जो एकाकी विचरण करता है, जो शान्त है, (12) जिसका जीवन धर्म के लिए होता, जिसका धर्म हरि (आत्मा) के लिए होता है, जो रात-दिन धर्म में लीन रहता है, (13) जो निस्तृष्ण है, जो अहिंसक है, जो नमस्कार और स्तुति से दूर रहता है, जो सब प्रकार के बन्धनों से मुक्त है और (14) जिसके मोह और पाप दूर हो गए हैं, जो इहलोक और परलोक के भोगों में आसक्त नहीं होता-वह ब्राह्मण है-ब्रह्मज्ञानी है।