SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण : छठा तुलनात्मक अध्ययन भारतीय जन-मानस श्रमण और वैदिक-दोनों परम्पराओं से प्रभावित रहा है। भारत की सभ्यता और संस्कृति इन परम्पराओं के आधार पर विकसित हुई और फलीफूली। दोनों परम्पराओं में एक ऐसी अनुस्यूति थी, जो भेद में अभेद को प्रोत्साहित करती थी। दोनों परम्पराओं के साधकों ने अनुभूतियाँ प्राप्त की। उनमें कई अनुभूतियाँ समान थीं और कई असमान। कुछ अनुभूतियों का परस्पर विनिमय भी हुआ। इस अध्याय में उन्हीं का एक विहंगावलोकन है। यह देख कर हमें बहुत आश्चर्य होगा कि कतिपय श्लोकों में विचित्र शब्द-साम्य और अर्थ-साम्य है / मूलतः कौन, किस परम्परा का हैयह निर्णय करना कष्टसाध्य है। फिर भी सिद्धान्त के आधार पर हम एक निश्चय पर पहुँच सकते हैं। उदाहरण के लिए उत्तराध्ययन सूत्र में 'कालीपव्वंगसंकासे' 'किस्से धमणिसंतए'—ये पद आएं हैं / बौद्ध-साहित्य में भी इनकी आवृत्ति हुई है। जैनसूत्रों में ये विशेषण ऐसे तपस्वी के लिए आए हैं, जो तपस्या के द्वारा अपने शरीर को इतना कृश बन देता है कि वह काली पर्व के सदृश हो जाता है और उसकी नाड़ियों का जाल स्फुट दीखने लगता है। ये विशेषण यथार्थ हैं क्योंकि ऐसी तपस्या जैन मत में सम्मत रही हैं / बौद्ध-साहित्य में ये पद ब्राह्मण के लक्षण बताते समय तथा सामान्य साधु के लिए प्रयुक्त हुए हैं। परन्तु यहाँ यह शंका होती है कि तपस्या के बिना शरीर इतना कृश नहीं होता और ऐसी कठोर तपस्या बौद्धों को अमान्य रही है। इससे यह लगता है कि उन्होंने ये शब्द जैन या वैदिक धर्म के प्रभाव-काल में स्वीकृत किए हैं। डॉ० विन्टरनित्ज की मान्यता है कि "कथाओं, संवादों और गाथाओं की समानता का कारण यह है कि ये सब बहुत काल से प्रचलित श्रमण-साहित्य के अंश थे और उन्हीं - से जैन, बौद्ध, महाकाव्यकारों तथा पुराणकारों ने इन्हें अपना लिया है।" __यहाँ उत्तराध्ययन के अध्ययन-क्रम से तुलनात्मक सामग्री प्रस्तुत की गई है .१-उत्तराध्ययन, 2 / 3 / २-धम्मपद 26 / 13 ; थेरागाथा 246 / 3-The Jainas in the History of Indian Literature, p. 7.
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy