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________________ 361 खण्ड 2, प्रकरण : 2 प्रत्येक-बुद्ध बालक श्मशानपाल के यहाँ बड़ा हुआ। वह अपने समवयस्क बालकों के साथ खेल खेलते समय कहता- "मैं तुम्हारा राजा हूँ। मुझे कर दो।" एक बार उसके शरीर में सूखी खुजली हो गई। वह अपने साथियों से कहता"मुझे खुजला दो।" ऐसा करने से उसका नाम 'करकण्डु' हुआ। ___ करकण्डु उस साध्वी के प्रति अनुराग रखता था। वह साध्वी मोहवश उसे भिक्षा में प्राप्त लड्डू आदि दिया करती थी। ____ बालक बड़ा हुआ / वह श्मशान की रक्षा करने लगा। वहाँ पास ही बाँस का वन था / एक बार दो साधु उस ओर से निकले / एक साधु दण्ड के लक्षणों को जानता था। उसने कहा - "अमुक-प्रकार का दण्ड जो ग्रहण करेगा, वह राजा होगा।" करकण्डु तथा एक ब्राह्मण के लड़के ने यह बात सुनी / ब्राह्मणकुमार तत्काल गया और उस लक्षण वाले बाँस का दण्ड काटा / करकण्डु ने कहा- "यह बाँस मेरे श्मशान में बढ़ा है, अतः इसका मालिक मैं हूँ।" दोनों में विवाद हुआ। न्यायाधीश के पास गए। उसने न्याय देते हुए करकण्डु को दण्ड दिला दिया। ब्राह्मण कुपित हुआ और उसने चाण्डाल परिवार को मारने का षड्यंत्र रचा। चाण्डाल को इसकी जानकारी मिल गई। वह अपने परिवार को साथ ले काञ्चनपुर चला गया। काञ्चनपुर का राजा मर चुका था। उसके पुत्र नहीं था। राजा चुनने के लिए घोड़ा छोड़ा गया। घोड़ा सीधा वहीं जा रुका, जहाँ चाण्डाल विश्राम कर रहा था। घोड़े ने कुमार करकण्डु की प्रदक्षिणा की और वह उसके निकट ठहर गया / सामन्त आए / कुमार को ले गए / राज्याभिषेक हुआ / वह काञ्चनपुर का राजा बन गया। जब ब्राह्मणकुमार ने यह समाचार सुना तो वह एक गाँव लेने की आशा से करकण्डु के पास आया और याचना की कि मुझे चम्पा-राज्य में एक गाँव दिया जाए। करकण्डु ने दधिवाहन के नाम पत्र लिखा। दधिवाहन ने इसे अपना अपमान समझा। उसने करकण्डु को बुरा-भला कहा। करकण्डु ने यह सब सुन कर चम्पा पर चढ़ाई कर दी। - साध्वी रानी पद्मावती ने युद्ध की बात सुनी। मनुष्य-संहार की कल्पना साकार हो उठी। वह चम्पा पहुँची। पिता-पुत्र का परिचय कराया। युद्ध बन्द हो गया। राजा दधिवाहन अपना सारा राज्य करकण्ड को दे प्रवजित हो गया। करकण्डु गो-प्रिय था / एक दिन वह गोकुल देखने गया। उसने एक पतले बछड़े को देखा। उसका मन दया से भर गया। उसने आज्ञा दी कि इस बछड़े को उसकी माँ का सारा दूध पिलाया जाए और जब यह बड़ा हो जाए तो दूसरी गायों का दूध भी इसे पिलाया जाए / गोपालों ने यह बात स्वीकार की।
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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