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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 353 आगे चल कर राजा अपने पुत्र को राज्य दे प्रवजित हो जाता है।' इस जातक से उत्तराध्ययन अध्ययन ह और 13 का आंशिक साम्य है (1) 'नगरी जलने पर मेरा कुछ नहीं जलता'-प्रत्येक-बुद्ध सोनक का यह कथन उत्तराध्ययन के नमि (नौंवाँ अध्ययन) के-'मिथिला के जलने पर मेरा कुछ भी नहीं जलता'-इस कथन से मिलता है। (2) जातक में अरिन्दमकुमार अपने मित्र सोनक को ढूँढने के लिए एक श्लोक प्रचारित करते हैं, दूसरे श्लोक को सुन मित्र-मुनि से मिलते हैं और उनके उपदेश से प्रभावित हो प्रबजित हो जाते हैं। उत्तराध्ययन के १२वें अध्ययन में चित्र और सम्भूत एक जन्म में भाई थे। मर कर देव बने / वहाँ से च्यवन कर भिन्न-भिन्न प्रदेशों में उत्पन्न हुए / एक ब्रह्मदत्त कुमार और दूसरा एक इभ्य का पुत्र / ब्रह्मदत्त कुमार ने भाई की खोज करने के लिए श्लोक का आधा भाग प्रचारित किया और उसे पूरा करने वाले को पारितोषिक देने की घोषणी को। एक रहट वाले ने उसकी पूर्ति की। राजा उसे साथ ले रहट पर आया। मुनि को देख गद्गद् हो गया। मुनि ने उपदेश किया। पर व्यर्थ / मुनि मुक्त हो जाते हैं और राजा नरक में जा गिरता है। माण्डव्य मुनि और जनक महाभारत ( शान्ति पर्व, अध्याय 276 ) में माण्डव्य मुनि और जनक का संवाद आया है / एक बार युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म से पूछा-तृष्णा-क्षय का उपाय कौनसा है ? भीष्म ने प्राचीन उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा-राजन् ! एक बार माण्डव्य मुनि ने विदेहराज जनक से भी यही प्रश्न किया था। उसका उत्तर देते हुए राजा जनक ने कहा सुमुख बत जीवामि यस्य मे नास्ति किञ्चन / मिथिलायां प्रदीप्तायां न मे वह्यति किञ्चन // 4 // "मैं बड़े सुख से जीवन व्यतीत कर रहा हूँ, क्योंकि इस जगत् में कोई भी वस्तु मेरी नहीं है। किसी पर भी मेरा ममत्व नहीं है। मिथिला के प्रदीप्त होने पर भी मेरा कुछ नहीं जलता।' "जो विवेकी हैं, उन्हें समृद्धि-सम्पन्न विषय भी दुःख रूप ही जान पड़ते हैं। परन्तु अज्ञानियों को तुच्छ विषय भी सदा मोह में डाले रहते हैं। लोक में जो काम जनित सुख है तथा जो स्वर्ग का दिव्य एवं महान् सुख है, वे दोनों तृष्णा-क्षय से होने वाले सुख की सोलहवीं कला की भी तुलना नहीं कर सकते।" १-सोनक जातक, संख्या 529 (जातक भाग 5, पृ० 331-346 ) /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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