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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण उत्तराध्ययन के 44, 45 वें श्लोक की ओर संकेत करते हुए सरपेन्टियर ने बताया है कि इन श्लोकों का प्रतिपाद्य जातक के 18 वें श्लोक में प्रतिपादित कथा से ही जाना जा सकता है / वह कथा है___ "पुरोहित का सारा कुटुम्ब प्रत्रजित हो गया। राजा ने यह सुन उसका सारा धन मंगवा लिया। रानी को यह पता लगा। उसने राजा को समझाने के लिए एक उपाय सोचा। उसने कसाई-घर से मांस मंगवाया और उसे राज्याङ्गग में बिखेर दिया। सीधे रास्ते को छोड़, उसके चारों ओर जाल तनवा दिया। मांस को देख कर गीध आए। भर पेट मांस खाए। उनमें जो बुद्धिमान् थे, उन्होंने जाल फैला हुआ देख कर सोचा कि मांस खा कर हम भारी हो चुके हैं। अब हम सीधे नहीं उड़ सकेंगे। उन्होंने खाये हुआ मांस का वमन किया और हल्के हो सीधे उड़ कर चले गए। जाल में नहीं फंसे / किन्तु जो विचारहीन गीध थे, उन्होंने बुद्धिमान् गीधों द्वारा वमित मांस भी खा लिया। वे बहुत भारी हो गए। सीधे उड़ने में असमर्थ थे। वे टेढ़े उड़े और जाल में फंस गए / तब एक गीध ला कर रानी को दिखाया गया। वह उसे ले राजा के समीप गई और बोली-महाराज ! राज्याङ्गग में एक तमाशा देखें। उसने झरोखा खोला और कहा--- महाराज ! इन गीधों को देखें। इनमें जो खा कर वमन कर दे रहे हैं, वे पक्षी उड़ कर चले जा रहे हैं और जी खा कर वमन नहीं कर सकते, वे मेरे हाथ में आ फो।"१ ___ यह प्रसंग यथार्थ लगता है। परन्तु जैन-व्याख्याकारों ने इसका कोई संकेत नहीं दिया / सम्भवतः इसका हेतु परम्परा की विस्मृति है। सरपेन्टियर उत्तराध्ययन के इस अध्ययन के 46 से 53 तक के श्लोकों को मूल नहीं मानते / उनका कथन है कि "ये पाँच श्लोक मूल-कथा से सम्बन्धित नहीं हैं और संभव है कि जैन-कथाकार ने इनका निर्माण कर यहाँ रखा हो।" 2 परन्तु ऐसा मानने का कोई आधार नहीं है। एक संवाद * मार्कण्डेय पुराण (अध्याय 10) में भी उक्त चर्चा का संवादी एक संवाद आया है। जैमिनी ने पक्षिगण से प्राणियों के जन्म आदि विषयक प्रश्न किए। उसके समाधान में उन्होंने पिता-पुत्र का एक संवाद प्रस्तुत करते हुए कहा १-जातक संख्या 509, पाँचवाँ खण्ड, पृ० 75 / 2-The Uttaradhyana Sutra, page 335. The verses from 49 to the end of the chapter certainly do not belong to original legend. But must have been composed by the Jain author.
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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