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________________ खण्ड 2, प्रकरण :1 कथानक संक्रमण 'तात, हम ऋषि नहीं हैं, यह राजा एसुकारी है और मैं तुम्हारा पिता पुरोहित / ' 'तो, तुमने ऋषि-भेष क्यों बनाया ?' 'तेरी परीक्षा लेने के लिए।' 'मेरी क्या परीक्षा लेते हो ?' 'यदि हमें देख कर प्रबजित न हो, तो हम राज्याभिषिक्त करने के लिए आए है।' 'तात ! मुझे राज्य नहीं चाहिए, मैं प्रव्रजित होऊँगा।' ___ तब उसके पिता ने 'तात हस्तिपाल, यह प्रव्रज्या का समय नहीं है', कह अपने आशय के अनुसार उसे उपदेश देते हुए चार गाथाएँ कहीं अधिच्च वेदे परियेस वित्तं, पुत्ते गेहे तात पति?पेत्वा गन्धे रसे पच्चनुभुत्व सब्बं * अरज्जं साधु, मुनि सो पसत्थो // 4 // 'वेदाध्ययन कर, धनार्जन कर, हे तात ! जो पुत्रों को राज्यादि पर स्थापित कर तथा सभी कामभोगों को भोगकर अरण्य में प्रविष्ट होता है, उसका ऐसा करना साधु है और उस मुनि की प्रशंसा होती है।' तब हस्तिपाल बोला-- वेदा न सच्चा न च वित्तलाभो न. पुत्तलाभेन जरं विहन्ति, गन्धे रसे मुच्चनं आहु सन्तो सकम्मुना होति फल्पपत्ति // 6 // 'न वेद सत्य हैं और न धन-लाभ सत्य है, और न पुत्र-लाभ से ही जरा का नाश होता है / सन्त पुरुषों का कहना है कि गन्ध-रस आदि काम-भोग मूर्छा हैं। अपने किए कर्म से ही फल की प्राप्ति होती है।' - कुमार का कथन सुनकर राजा बोला अद्धा हि सच्चं वचनं तवेतं सकम्मुना होति फलूपपत्ति जिण्णा च माता पितरो च तव यिमे पस्सेय्यं तं वस्स सतं अरोगं // 6 // 'निश्चय से तेरा यह कथन सत्य है कि स्वकर्म से ही फल की प्राप्ति होती है। तेरे * माता-पिता वृद्ध हो गए हैं। वे तुझे सौ वर्ष तक नीरोग देखें / '
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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