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________________ 284 ___ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन / को स्वीकार करते थे। इस तथ्य को निराधार बताना ही इन कथाओं का प्रतिपाद्य था। यह तथ्य जैन-कथानक में स्पष्ट प्रतीत होता है और वह भी बहुत अधिक मानवीय और सहानुभूतिपूर्ण विधि से।' चित्र-सम्भूत ( उत्तराध्ययन 13) साकेत नगर में चन्द्रावतंसक राजा का पुत्र मुनिचन्द्र राज्य करता था। राज्य का उपभोग करते-करते उसका मन काम-भोगों से विरक्त हो गया। उसने मुनि सागरचन्द के पास दीक्षा ग्रहण की। वह अपने गुरु के साथ-साथ देशान्तर जा रहा था। एक बार वह भिक्षा लेने गाँव में गया, पर सार्थ से बिछड़ गया और एक भयानक अटवी में जा पहुँचा / वह भूख और प्यास से व्याकुल हो रहा था। वहाँ चार ग्वाल-पुत्र गाएँ चरा रहे थे। उन्होंने मुनि की अवस्था देखी। उनका मन करुणा से भर गया। उन्होंने मुनि की परिचर्या की। मुनि स्वस्थ हुए। चारों ग्वाल-पुत्रों को धर्म का उपदेश दिया। चारों बालक प्रतिबुद्ध हुए और मुनि के पास दीक्षित हो गए। वे सभी आनन्द से दीक्षा-पर्याय का पालन करने लगे। किन्तु उनमें से दो मुनियों के मन में 'मैले कपड़ों के विषय में जुगुप्सा रहने लगी। चारों मर कर देवगति में गए। जुगुप्सा करने वाले दोनों देवलोक से च्युत हो दशपुर नगर में शांडिल्य ब्राह्मण की दासी यशोमती की कुक्षी से युगल रूप में जन्मे। वे युवा हुए। एक बार वे जंगल में अपने खेत की रक्षा के लिए गए। रात हो गई। वे एक वट वृक्ष के नीचे सो गए। अचानक ही वृक्ष के कोटर से एक सर्प निकला और एक को डंस कर चला गया। दूसरा जागा। उसे यह बात मालूम हुई। तत्काल ही वह सर्प की खोज में निकला। वही सर्प उसे भी डॅस गया। दोनों मर कर कालिंजर पर्वत पर एक मृगी के उदर से युगल रूप में उत्पन्न हुए। एक बार दोनों आस-पास चर रहे थे। एक व्याध ने एक ही बाण से दोनों को मार डाला। वहाँ से मर कर वे गंगा नदी के तौर पर एक राजहंसिनी के गर्भ में आए। युगल रूप में जन्मे / वे युवा बने। वे दोनों साथ-साथ घूम रहे थे। एक बार एक मछुए ने उन्हें पकड़ा और गर्दन मरोड़ कर मार डाला। उस समय वाराणसी नगरी में चाण्डालों का एक अधिपति रहता था। उसका नाम ____ 1. Annals of the Bhandarkar Oriental Research Institute, Vol. 17 (1935-1936) 'A few Parallels in Jain and Buddhist works', page 345, by A. M. Ghatage M. A.
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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