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________________ 276 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन कतमं दिसं अगमा भूरिपो अक्खाथ मे माणवा एतमत्थं, गन्त्वान तं पटिकरेमु अञ्चयं अप्पेव नं पुत्तं लभेसु जीवितं // 13 // [वह बहु-प्रज्ञ किस ओर गया है ? हे तरुणो ! मुझे यह बताओ। हम उसके पास जाकर अपना अपराध क्षमा करवावें / सम्भव है हमारे पुत्र को जीवन-लाभ हो जाय।] बहाँ खड़े हुए तरुणों ने उसे इस प्रकार कहा वेहासयं अगमा भूरिपो पथद्धनो पन्नरसे व चन्दो , अपि चापि सो पुरिमं दिसं अगञ्छि सच्चप्पटिओ इसि साधुरूपो // 14 // [ वह बहु-प्रज्ञ आकाश की ओर गया है। पूर्णिमा के चन्द्रमा की भाँति वह ( आकाश-) मार्ग के बीचोबीच गया है। और वह साधु-स्वरूप सत्य-प्रतिज्ञ ऋषि पूर्व दिशा की ओर गया है। ] उसने उनकी बात सुन अपने स्वामी को खोजने का निश्चय किया। सोने का कलश और सोने का प्याला लिया, दासियों सहित वह वहाँ पहुंची जहाँ बोधिसत्व ने अपने चरण-चिन्हों के दिखाई देने का दृढ़-संकल्प किया था। उसके अनुसार जा वह जिस समय बोधिसत्व पीढ़े पर बैठ भोजन कर रहे थे, उनके पास पहुंची और प्रणाम करके एक ओर खड़ी हुई। उसने उसे देख थोड़ा भात पात्र में छोड़ा। दिवमङ्गलिका ने स्वर्णकलश से उसे पानी दिया। उसने वहीं हाथ धो मुख-प्रक्षालन किया। उसने यह पूछते हुए कि किसने मेरे पुत्र की शकल बिगाड़ी, गाथा कही आवेठितं पिठितो उत्तमङ्ग बाहं पसारेति अकम्मनेय्यं, सेतानि अक्खी नि यथा नतस्स को मे इमं पुत्तं अकासि एवं // 15 // [ अर्थ ऊपर दिया ही है / ] इसके बाद की गाथाएँ उनके प्रश्नोत्तर हैं यक्खा हवे सन्ति महानुभावा अम्बागता इसयो साधुरूपा, ते दुट्ठचित्तं कुपितं विदित्वा यक्खा हि ते पुतं अकंसु एवं // 16 //
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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