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________________ खण्ड 2. प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 266 शराब के नशे के कारण सो गया। जो स्त्रियाँ बैठी गा रही थीं उन्होंने वाद्य छोड़े और उद्यान जा फल-फूल चुनने लगों। जब उन्होंने स्थविर को देखा तो जाकर प्रणाम कर बैठों। स्थविर बैठे धर्म-कथा कह रहे थे। उस स्त्री ने भी देह हिलाकर राजा को जगा दिया / उसने पूछा- "वे चण्डालनियाँ कहाँ गई ?" उत्तर दिया- "एक श्रमण को घेर कर बैठी हैं।" वह गुस्सा हुआ और जाकर स्थविर को बुरा भला कहा। फिर 'अच्छा, श्रमण को लाल चीटियों से कटवाता हूँ' कह स्थविर के शरीर पर लाल चींटों का दोना छुड़वा दिया। स्थविर ने आकाश में खड़े हो उसे उपदेश दिया। फिर जेतवन में गन्धकुटी के द्वार पर ही उतरे / तथागत ने पूछा-कहाँ से आये ? वह समाचार कहा। शास्ता ने 'भारद्वाज ! न केवल अभी उदयन प्रवजितों को कष्ट देता है, इसने पूर्वजन्म में दिया ही है' कह उसके प्रार्थना करने पर पूर्वजन्म की कथा कही। ख. अतीत कथा पूर्व समय में वाराणसी में ब्रह्मदत्त के राज्य करने के समय बोधिसत्व नगर के बाहर चाण्डाल-योनि में पैदा हुए। उनका नाम रखा गया मातङ्ग। आगे चल कर बड़े होने पर मातङ्ग-पण्डित नाम से प्रसिद्ध हुए। ___उस समय वाराणसी सेठ की एक लड़की ( दिट्ठमंगलिका ) शकुन मानने वाली थी। वह एक-दो महीने में एक बार बड़ी मण्डली के साथ बाग में उद्यान-क्रीड़ा के लिए जाती। एक दिन बोधिसत्व किसी काम से नगर में जा रहे थे। बोधिसत्व ने नगर में प्रवेश करते समय नगर-द्वार के भीतर दिट्ठमङ्गलिका को देखा। वह एक ओर जा, लग कर खड़ा हुआ। दिट्ठमङ्गलिका ने कनात में से देख कर पूछा--"यह कौन है ?" ..."आयें ! चाण्डाल है।" "न देखने योग्य दृश्य दिखाई देते हैं" कह उसने सुगन्धित जल से आँखें धोई और लौट पड़ी ! उसके साथ आए हुए आदमी गुस्से में भर कर बोले-“रे दुष्ट चाण्डाल ! आज तेरे कारण हमारी मुफ्त की शराब और भोजन जाता रहा।" वे मातङ्ग-पण्डित को हाथों और पाँव से पीट कर बेहोश करके गये। थोड़ी देर में जब उसे होश आया तो उसने सोचा-दिट्ठमङ्गलिका के आदमियों ने मुझ निर्दोष को अकारण पीटा है, अब मुझे दिट्ठमङ्गलिका मिलेगी तभी उलूंगा, नहीं मिलेगी तो नहीं उठूगा / इस प्रकार का दृढ़ निश्चय कर वह जाकर उसके पिता के निवास स्थान के द्वार पर पड़ रहा। उसने पूछा-"क्यों पड़ा है ?" - "और कोई कारण नहीं, मुझे दिट्ठमङ्गलिका चाहिए।" एक दिन बीता, दूसरा, तोसरा, चौथा, पाँचवाँ तथा छठा दिन बीता। बोधिसत्वों का संकल्प पूरा होता ही है,
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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