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________________ 244 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन कृष्ण, धम्र और नील वर्ण का सुख मध्यम होता है। रक्त वर्ण अधिक सह्य होता है। हारिद्र वर्ण सुखकर और शुक्ल वर्ण अधिक सुखकर होता है।"१ ____ कृष्ण वर्ण की नीच गति होती है। वह नरक में ले जाने वाले कर्मों में आसक्त रहता है / नरक से निकलने वाले जीव का वर्ण धूम्र होता है, यह पशु-पक्षी जाति का रंग है। नील वर्ण मनुष्य जाति का रंग है। रक्त वर्ण अनुग्रह करने वाले देववर्ग का रंग है। हारिद्र वर्ण विशिष्ट देवताओं का रंग है। शुक्ल वर्ण सिद्ध शरीरधारी साधकों का रंग है।२ महाभारत में एक स्थान पर लिखा है--"दुष्कर्म करने वाला मनुष्य वर्ण से परिभ्रष्ट हो जाता है। पुण्य-कर्म से वह वर्ण के उत्कर्ष को प्राप्त होता है / "3 ___'लेश्या' और महाभारत के 'वर्ण-निरूपण' में बहत साम्य है, फिर भी वह महाभारत से गृहीत है, ऐसा मानने के लिए कोई हेतु प्राप्त नहीं है। रंग के प्रभाव की व्याख्या लगभग सभी दर्शन-ग्रन्थों में मिलती है। जैन-आचार्यों ने उसे सर्वाधिक विकसित किया, इस सम्बन्ध में कोई भी मनीषी दो मत नहीं हो सकता। इस विकास को देखते हुए सहज ही यह कल्पना हो जाती है कि जैन-आचार्य इसका प्रतिपादन बहुत पहले से ही करते आए हैं। इसके लिए वे उन दूसरी परम्पराओं के ऋणी नहीं हैं, जिन्होंने इसका प्रतिपादन केवल प्रासंगिक रूप में ही किया है। ___ गीता में गति के कृष्ण और शुक्ल-ये दो वर्ग किए गए हैं। कृष्णगति वाला बारबार जन्म-मरण करता है / शुक्लगति वाला जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है / / ___धम्मपद में धर्म के दो भाग किए गए हैं। वहाँ लिखा है- "पण्डित मनुष्य को कृष्णधर्म को छोड़ शुक्ल-धर्म का आचरण करना चाहिये।"५ पतञ्जलि ने कर्म को चार जातियाँ बतलाई थीं-(१) कृष्ण, (२)शुक्ल-कृष्ण, (3) शुक्ल और (4) अशुक्ल-अकृष्ण। ये क्रमशः अशुद्धतर, अशुद्ध, शुद्ध और शुद्धतर हैं। १-महाभारत, शान्तिपर्व, 28033 : षड् जीववर्णाः परमं प्रमाण, कृष्गो धूम्रो नीलमथास्य मध्यम् / रक्तं पुनः सह्यतरं सुखं तु, हारिद्रवर्णं सुसुखं च शुक्लम् // २-वही, 280 / 34-47 / ३-वही, 29114-5 / ४-गीता, 8 / 26: शुक्लकृष्णे गती ह्यते, जगतः शाश्वते मते / एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावतते पुनः // ५-धम्मपद, पंडितवग्ग, श्लोक 19 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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