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________________ 224 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन यह मध्यम-मार्ग की मान्यता जिनसेन से बहुत पहले ही स्थिर हो चुकी थी। अनेकान्त दृष्टि के साथ-साथ ही इसका उदय हुआ था। उत्तराध्ययन में उसके अनेक बीज प्राप्त हैं / आहार और अनशन-दोनों का ऐकान्तिक विधान नहीं है / छह कारणों से आहार करने की अनुमति दी गई है / वे ये हैं (1) वेदना, (2) वैयावृत्त्य, (3) ईर्या, (4) संयम, (5) प्राणधारण और (6) धर्मचिन्ता। छह कारणों से अनशन करने की अनुमति दी गई है-- (1) आतंक, (2) उपसर्ग, (4) ब्रह्मचर्यधारण, (4) प्राणिदया, (5) तपस्या और (6) शरीर-विच्छेद / ___ इसी प्रकार सरस भोजन का भी एकातिक विधि-निषेध नहीं है। जो दूध, दही आदि सरस आहार करे उगे तपस्या भी करनी चाहिए-आहार और तपस्या का संतुलित क्रम चलना चाहिए / जो ऐसा नहीं करता, वह पाप-श्रमग होता है / आमरण अनशन के लिए भी अनेकान्तिक व्यवस्था है। जब तक ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुणों का नित नया विकास होता रहे तब तक जीवन का धारण किया जाय, आहार आदि से शरीर को चलाया जाय और जब ज्ञान, दर्शन आदि का लाभ प्राप्त करने की क्षमता न रहे, उस स्थिति में देह का त्याग किया जाय-आहार का प्रत्याख्यान किया जाय / 4 १-उत्तराध्ययन, 26 / 32,33 / २-वही, 26 / 33-34 / ३-वही, 1715 / ४-वही, 417: लाभान्तरे जीविय वूहइत्ता, पच्छापरिन्नाय मलावधंसी। .
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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