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________________ 220 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन - नहीं होता, उसी प्रकार प्रकाम-भोजी ( ठूस-ठूस कर खाने वाले ) की इन्द्रियाग्नि (कामाग्नि) शान्त नहीं होती। इसलिए प्रकाम भोजन किसी भी ब्रह्मचारी के लिए हितकर नहीं होता।"१ "एकान्त में रहो।"२ "स्त्री संसर्ग से बचो।" "जैसे बिल्ली की बस्ती के पास चूहों का रहना अच्छा नहीं होता, उसी प्रकार स्त्रियों की बस्ती के पास ब्रह्मचारी का रहना अच्छा नहीं होता। .. "तपस्वी श्रमण स्त्रियों के रूप, लावण्य, विलास, हास्य, मधुर आलाप, और चितवन को चित्त में रमाकर उन्हें देखने का संकल्प न करे। ___ "जो सदा ब्रह्मचर्य में रत हैं उनके लिए स्त्रियों का न देखना, न चाहना और न चिन्तन करना और न वर्णन करना हितकर है, और वह धर्म-ध्यान के लिए उपयुक्त है। ___"यह ठीक है कि तीन गुप्तियों से गुप्त मुनियों को विभूषित देवियाँ भी विचलित नहीं कर सकतों, फिर भी भगवान् ने एकान्त हित की दृष्टि से उनके लिए विविक्तवास को प्रशस्त कहा है। "मोक्ष चाहने वाला संसार-भीरु एवं धर्म में स्थित मनुष्य के लिए लोक में और कोई ऐसा दुस्तर नहीं है, जैसी दुस्तर अज्ञानियों के मन को हरने वाली स्त्रियाँ हैं। ___"जो मनुष्य इन स्त्री-विषयक आसक्तियों का पार पा जाता है, उसके लिए शेष सारी आसक्तियाँ वैसे ही सुतर (सुख से पार करने योग्य) हो जाती हैं, जैसे महासागर का पार पा जाने वाले के लिए गंगा जैसी बड़ी नदी।"3" "ब्रह्मचर्य के दस नियमों का पालन करो।" 4 इस प्रकार और भी अनेक नियम हैं जो निमितों से बचने के लिए बनाए गए थे। समग्र दृष्टि से देखा जाए तो अनगार दीक्षा और क्या है ? वह निमित्तों से बचने की प्रक्रिया ही तो है। ___ इस प्रकार अगार और अनगार जीवन का श्रेणी विभाग बहुत ही मनोवैज्ञानिक है / अगार-जीवन में साधना के विघ्नभून निमित्तों से बचने में जो कठिनाई होती है, उसका पार पा जाना ही अनगार-जीवन है। पहली भूमिका में बाह्य विषयों का त्याग उसकी सुरक्षा के लिए किया जाता है ओर अग्रिम भूमिकाओं में वह सहज स्वभाव हो जाता है / कृत त्याग में स्खलनाएं हो सकती हैं किन्तु सहज स्वभाव में कोई स्खलना नहीं होती। १-उत्तराध्ययन, 32 // 10,11 / २-वही, 32 / 4 / ३-वही, 32 / 13-18 / ४-१६वाँ अध्ययन /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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