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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 8 1 -धर्म की धारणा के हेतु 207 नहीं होता, केवल उसका रूपान्तरण होता है। वर्तमान जीवन अतीत और अनागत शृङ्खला की एक कड़ी मात्र है। अत: इहलोक जितना सत्य है, उतना ही सत्य है परलोक। ___ भावी जीवन वर्तमान जीवन का प्रतिबिम्ब होता है। इस धारणा से प्रेरित हो यह कहा गया "जो मनुष्य लम्बा मार्ग लेता है और साथ में सम्बल नहीं लेता, वह भूख और प्यास से पीड़ित होकर चलता हुआ दुःखी होता है। "इसी प्रकार जो मनुष्य धर्म किए बिना पर-भव में जाता है, वह व्याधि और रोग से पीड़ित होकर जीवन-यापन करता हुआ दुःखी होता है / ___ "जो मनुष्य लम्बा मार्ग लेता है, किन्तु सम्बल के साथ / वह भूख-प्यास से रहित होकर चलता हुआ सुखी होता है। "इसी प्रकार जो मनुष्य धर्म की आराधना कर पर-भव में जाता है, वह अल्प-कर्म वाला और वेदना-रहित होकर जीवन-यापन करता हुआ सुखी होता है। आचार्य गद्दभालि ने राजा संजय से कहा था- "राजन् ! तू जहाँ मोह कर रहा है, वह जीवन और सौन्दर्य बिजली की चमक के समान चञ्चल है। तू परलोक के हित को क्यों नहीं समझ रहा है ?"2 - धर्म केवल परलोक के लिए ही नहीं, इहलोक के लिए भी है। किन्तु इहलोक की पवित्रता से परलोक पवित्र बनता है, अत: परिणाम की दृष्टि से कहा जाता है कि धर्म से परलोक सुधरता है। इहलोक और परलोक के कल्याण में परस्पर व्याप्ति है / परलोक का कल्याग इहलोक का कल्याण होने पर ही निर्भर है। सचाई तो यह है कि धर्म से आत्मा शुद्ध होती है, उससे इहलोक और परलोक सुधरते हैं, यह व्यवहार की भाषा है। कुछ धार्मिक लोग ऐहिक और पारलौकिक सिद्धियों के लिए धर्म का विधान करते थे, उसका भगवान् महावीर ने विरोध किया और यह स्थापना की कि धर्म केवल आत्मशुद्धि के लिए किया जाए। १-उत्तराध्ययन, 19 / 18.21 / २-वही, 18 / 13 / ३-दशवकालिक, 9 / 4 सूत्र 6 / ..
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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