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________________ 184 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन है-हेतु है / ' आगमों में इसके चार लिङ्ग (लक्षण) बतलाए गए हैं / 'ध्यान के प्रकार' शीर्षक देखिए। (12) फल-धर्म्य-ध्यान का प्रथम फल आत्म-ज्ञान है। जो सत्य अनेक तर्कों के द्वारा नहीं जाना जाता, वह ध्यान के द्वारा सहज ही ज्ञात हो जाता है / आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है-“कर्म क्षीण होने पर मोक्ष होता है, कर्म आत्म-ज्ञान से क्षीण होते हैं और आत्म-ज्ञान ध्यान से होता है। यह ध्यान का प्रत्यक्ष फल है / " 2 पारलौकिक या परोक्ष फल के विषय में सन्देह हो सकता है, इसीलिए हमारे आचार्यों ने ध्यान के ऐहिक या प्रत्यक्ष फलों का भी विवरण प्रस्तुत किया है। ध्यान-सिद्ध व्यक्ति कषाय से उत्पन्न होने वाले मानसिक दुःखों-ईर्ष्या, विषाद, शोक, हर्ष आदि से पीड़ित नहीं होता। वह सर्दीगर्मी आदि से उत्पन्न शारीरिक कष्टों से भी पीड़ित नहीं होता। यह तथ्य वर्तमान शोधों से भी प्रमाणित हो चुका है कि बाह्य परिस्थितियों से ध्यानस्थ व्यक्ति बहत कम प्रभावित होता है। अन्तरिक्ष यात्रियों के लिए अत्यधिक सर्दी और गर्मी से अप्रभावित रहना आवश्यक है। इस दृष्टि से योग की प्रक्रिया को अन्तरिक्ष यात्रा के लिए उायोगो समझा गया। इस लक्ष्य की पुर्ति के लिए रूसियों और अमरीकियों ने भारत में आकर योगाभ्यास की अनेक प्रक्रियाओं का ज्ञान प्राप्त किया। शुक्ल-ध्यान ___ शुक्ल-ध्यान के लिए उपयुक्त सामग्री अभी प्राप्त नहीं है, अत: आधुनिक लोगों के लिए उसका अभ्यास भी संभव नहीं है / फिर भी उसका विवेचन आवश्यक है। उसकी परम्परा का विच्छेद नहीं होना चाहिए। आचार्य हेमचन्द्र की यह मान्यता है।४ इस मान्यता में सचाई भी है। अविच्छिन्न परम्परा से यदा-कदा कोई व्यक्ति थोड़ी बहुत मात्रा में लाभान्वित हो सकता है। अब हम भावना आदि बारह विषयों के माध्यम से शुक्ल-ध्यान का विवेचन करेंगे। भावना, प्रदेश, काल और आसन ये चार विषय धर्म्य और शुक्ल दोनों के समान है / " आलम्बन-आदि दोंनों के भिन्न-भिन्न हैं। १-ध्यानशतक 67 / २-योगशास्त्र 4 / 113: मोक्षः कर्मक्षयादेव, स चात्मज्ञानतो भवेत् / ध्यानसाध्यं मतं तच्च, तद्ध्यानं हितमात्मनः // ३-ध्यानशतक 103,104 / ४-योगशास्त्र 113,4 / ५-ध्यानशतक, 68, वृत्ति /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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