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________________ खण्ड 1. प्रकरण : 7 २-योग 171 चित्त के ही माने हैं। गरुडपुराण में भी ब्रह्म और आत्मा की चिन्ता को ध्यान कहा गया है। बौद्धधारा में भी ध्यान मानसिक ही माना गया है / ध्यान केवल मानसिक ही नहीं, किन्तु वाचिक और कायिक भी है। यह अभिमत जैन आचार्यो का अपना मौलिक है। पतञ्जलि ने ध्यान और समाधि-ये दो अंग पृथक मान्य किए, इसलिए उनके योगदर्शन में ध्यान का रूप बहुत विकसित नहीं हुआ। जैन आचार्यों ने ध्यान को इतने व्यापक अर्थ में स्वीकार किया कि उन्हें उससे पृथक् समाधि को मानने को आवश्यकता ही नहीं हुई। पतञ्जलि की भाषा में जो सम्प्रज्ञात समाधि है, वही जैन योग की भाषा में शुक्लध्यान का पूर्व चरण है।४ पतञ्जलि जिसे असम्प्रज्ञात समाधि कहते हैं, वह जैनयोग में शुक्ल-ध्यान का उत्तर चरण है / " ध्यान से समाधि को पृथक मानने की परम्परा जैन साधना पद्धति के उत्तर काल में स्थिर हुई, ऐसा प्रतीत होता है। इससे यह भी स्पष्ट है कि जैनों की ध्यान विषयक मान्यता पतञ्जलि से प्रभावित नहीं है। __केवलज्ञानी के केवल निरोधात्मक ध्यान ही होता है, किन्तु जो केवलज्ञानी नहीं हैं उनके एकाग्रतात्मक और निरोधात्मक दोनों ध्यान होते हैं। ध्यान का सम्बन्ध शरीर, वाणी और मन-तीनों से माना जाता रहा, फिर भी उसकी परिभाषा-चित्त की एकाग्रता ध्यान है--इस प्रकार की जाती रही है / भद्रबाहु के सामने यह प्रश्न उपस्थित था--यदि ध्यान का अर्थ मानसिक एकाग्रता है, तो इसकी संगति जैन-परम्परा सम्मत उस प्राचीन अर्थ-शरीर, वाणी और मन की एकाग्र प्रवृत्ति या निरेजन दशा ध्यान है के साथ कैसे होगी ?6 / आचार्य भद्रबाह ने इसका समाधान इस प्रकार किया--शरीर में वात, पित्त और कफ-ये तीन धातु होते हैं। उनमें से जो प्रचुर होता है, उसी का व्यपदेश किया जाता १-पातंजल योगदशन, 1118 / . २-गरुडपुराण, अ० 48 : / ब्रह्मात्मचिन्ता ध्यानं स्यात् / ३-विशुद्धिमार्ग, पृ० 141-151 / ४-पातंजल योगदर्शन, यशोविजयजी, 1118 : तत्र पृथक्त्ववितर्कसविचारकत्ववितर्काविचाराख्यशुक्लध्यानभेदद्वये सम्प्रज्ञातः समाधिवत्यानां सम्यग्ज्ञानात् / ५-वही, यशोविजयजी, 1118 / - ६-आवश्यक नियुक्ति, गाथा 1467 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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