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________________ खण्ड : 1 प्रकरण : 6 2 पार्श्व और महावीर का शासन-भेद 125 "से वारिया इत्थि सराइभत्तं" (सूत्रकृतांग, 116028) अर्थात् भगवान् ने स्त्री और रात्रि भोजन का निवारण किया। यह स्तुति-वाक्य इस तथ्य को ओर संकेत करता है कि भगवान महावीर ने ब्रह्मचर्य की विशेष व्याख्या, व्यवस्था या योजना की थी। ___ अब्रह्मचर्य को फोड़े की पीव निकालने आदि के समान बताया जाता था, उसके लिए भगवान् ने कहा- 'कोई मनुष्य तलवार से किसी का सिर काट शान्ति का अनुभव करे तो क्या वह दोषी नहीं है ? ___ "कोई मनुष्य चुपचाप शान्त-भाव से जहर की चूंट पीकर बैठ जाए तो क्या वह विष व्याप्त नहीं होता? ___"कोई मनुष्य किसी धनी के खजाने से अनासक्त-भाव से बहुमूल्य रत्नों को चुराए, तो क्या वह दोषी नहीं होता?'' दूसरे का सिर काटने वाला, जहर की चूंट पीने वाला और दूसरों के रत्न चुराने वाला वस्तुतः शान्त या अनासक्त नहीं होता, वैसे ही अब्रह्मचर्य का सेवन करने वाला शान्त या अनासक्त नहीं हो सकता। जो पार्श्वस्थ श्रमण अनासक्ति का नाम ले अब्रह्मचर्य का समर्थन करते हैं, वे कामभोगों में अत्यन्त आसक्त हैं / 2 ___ अब्रह्मचर्य को स्वाभाविक मानने की ओर श्रमणों का मानसिक झुकाव होता जा रहा था, उस समय उन्हें ब्रह्मचर्य की विशेष व्यवस्था देने की आवश्यकता थी। इस अनुकूल परीषह से श्रमणों को बचाना आवश्यक था। उस स्थिति में भगवान् महावीर ने ब्रह्मचर्य को बहुत महत्त्व दिया और उसकी सुरक्षा के लिए विशेष व्यवस्था दी ( देखिएउत्तराध्ययन, सोलहवाँ और बत्तीसवाँ अध्ययन ) / (2) सामायिक और छेदोपस्थापनीय भगवान् पार्श्व के समय सामायिक-चारित्र था और भगवान् महावीर ने छेदोपस्थापनीय-चारित्र का प्रवर्तन किया / वास्तविक दृष्टि से चारित्र एक सामायिक ही है / चारित्र का अर्थ है 'समता की आराधना' / विषमतापूर्ण प्रवृत्तियाँ त्यक्त होती हैं तब सामायिक-चारित्र प्राप्त होता है / यह निर्विशेषण या निर्विभाग है। भगवान् पार्श्व ने चाभित्र के विभाग नहीं किए, उसे विस्तार से नहीं समझाया। सम्भव है उन्हें इसकी आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई। भगवान् महावीर के सामने एक विशेष प्रयोजन उपस्थित १-सूत्रकृतांग नियुक्ति, गाथा 53-55 / २-सूत्रकृतांग, 1 / 3 / 4 / 13 / ३-विशेषावश्यक भाष्य, गाथा 1267 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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