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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . विझोली शिलालेख (ए० इ० 26, पृ० 86 ) का आरम्भ 'ओ नमो वीतरागाय' से किया गया है, जिसके पश्चात् पार्श्वनाथ की प्रार्थना मिलती है। जालोर के लेख में पार्श्वनाथ के 'ध्यज उत्सव' के लिए दान का वर्णन है श्री पार्श्वनाथ देवे तोरणादीनां प्रतिष्ठाकार्यो कृते / ध्वजारोपण प्रतिष्ठायां कृतायां (ए० इ० 11, पृ० 55) - मारवाड़ के शासक राजदेव के अभिलेख में महावीर मंदिर तथा विहार के निवासी जैन-साधु के लिए दान देने का विवरण मिलता है श्री महावीर चैत्ये साधु तपोधन निष्ठार्थे / लेखों के आधार पर कहा गया है कि राजपूताना में महावीर, पार्श्वनाथ तथा शांतिनाथ की पूजा प्रचलित थी। परमार लेख में ऋषभनाथ के पूजा का उल्लेख मिलता है और मन्दिर को अतीव सुन्दर तथा पृथ्वी का भूषण बतलाया है - श्री वृषभनाथ नाम्नः प्रतिष्ठितं भूषणेन बिम्बमिदं तेनाकारि मनोहरं जिन गृहं भूमे रिदं भूषणम् / " 1 पंजाब और सिन्धु-सौवीर ___ भगवान् महावीर ने साधुओं के विहार के लिए चारों दिशाओं की सीमा निर्धारित की, उसमें पश्चिमी सीमा 'स्थूणा' (कुरुक्षेत्र) है। इससे जान पड़ता है कि पंजाब का स्थूणा तक का भाग जैन-धर्म से प्रभावित था। साढ़े पच्चीस आर्य-देशों की सूची में भी कुरु का नाम है। सिन्धु-सौवीर सुदीर्घ-काल से श्रमण-संस्कृति से प्रभावित था ! भगवान महावीर महाराज उद्रायण को दीक्षित करने वहाँ पधारे ही थे। मध्य प्रदेश बुन्देलखण्ड में ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के लगभग जैन-धर्म बहुत प्रभावशाली था / आज भी वहाँ उसके अनेक चिन्ह मिलते हैं / राष्ट्रकूट-नरेश जैन-धर्म के अनुयायी थे। उनका कलचुरि-नरेशों से गहरा सम्बन्ध था। कलचुरि की राजधानी त्रिपुरा और रत्नपुर में आज भी अनेक प्राचीन जैनमूर्तियाँ और खण्डहर प्राप्त हैं। १-प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, पृ० 125 / २-खण्डहरों का वैभव, 164, 229 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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