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________________ सम्पादकीय तीन ४-आगम-अनुसन्धान ग्रन्थ-माला-इस ग्रन्थ-माला में आगमों के टिप्पण होंगे। ५-आगम-अनुशीलन ग्रन्थ-माला-इस ग्रन्थ-माला में आगमों के समीक्षात्मक अध्ययन होंगे। ६-आगम-कथा ग्रन्थ-माला-इस ग्रन्थमाला में सभी आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन होगा। ७-वर्गीकृत-आगम ग्रन्थ-माला...- इस ग्रन्थ-माला में आगमों के वर्गीकृत और संक्षिप्त संस्करण होंगे। प्रस्तुत पुस्तक आगम-अनुशीलन ग्रन्थ-माला का प्रथम नन्थ है। इसमें दशवकालिक का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। समीक्षा का पहला सूत्र है तटस्थता / आचार्य श्री के सत्य-स्पर्शी अन्त:करण ने हमें तटस्थता के प्रति दृष्टि दी है। हमने उसी से समन-कृति को देखा है। छद्मस्थ-मनुष्य अपने अपूर्ण-दर्शन का भागी है इसलिए वह यह गर्व नहीं कर सकता कि उसने हर तथ्य को परिपूर्ण दृष्टि से देखा है। हमे भी छद्मस्थ हैं, इसलिए हम परिपूर्ण दर्शन की दुहाई नहीं दे सकते / पर हमने हर शब्द और उसके अर्थ को तटस्थता की दृष्टि से देखने का विनम्र प्रयत्न किया है, यह कहना सत्य को अनावृत करना है। शोधपूर्ण सम्पादन में जहाँ लाभ है, वहाँ कठिनाइयाँ भी कम नहीं है। मेरे मतानुसार शोध के चार मान-दण्ड हो सकते हैं : : १-सर्वागत: नई स्थापना / २--एकांगतः नई स्थापना / ३-पूर्व स्थापना में संशोधन / ४-पूर्व स्थापना में विकास / आगम-साहित्य के सम्पादन में हमें नई स्थापना या पूर्व स्थापना में संशोधन या विकास नहीं करना है / वह हमारी स्वतंत्र मेधा का परिणाम है। इस समय तो हमें अतीत का अनुसन्धान करना है / हमारा कार्य शोधात्मक होने की अपेक्षा अनुसन्धानात्मक अधिक है। दो हजार वर्ष को अवधि में जो विस्मृत या अपरिचित हो गया, उसका पुनः सन्धान करने में हमें स्थान-स्थान पर शोधात्मक दृष्टि का भी सहारा लेना होता है। इसीलिए इस कार्य को हम शोध-पूर्ण सम्पादन की भी संज्ञा दे देते हैं / कृतज्ञता मैं आचार्य श्री के प्रति कृतज्ञ हूँ, इन शब्दों में जितना व्यवहार है, उतनी सचाई नहीं है। सचाई यह है कि मेरी हर कृति उनकी प्रेरणा-रेखाओं का संकलन है। कृतज्ञ शब्द में इतनी सामर्थ्य नहीं कि मैं इसके द्वारा मन की सारी सचाई को प्रकट कर दूं।
SR No.004301
Book TitleDashvaikalik Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1967
Total Pages294
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size16 MB
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