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________________ विद्यावृद्धसमुद्देशः * राजा के लिये युद्धों की संगति से लाभ(अन्यैव काचित्खलु छायोपजलतरूणाम् // 64 इस प्रकार विशिष्ट व्यक्तियों के संसर्ग से प्राप्त ज्ञान की शोभा जलसमीपवर्ती वृक्षों की छाया के समान कुछ अपूर्व ढंग की होती है / राजाओं के गुरु कैसे होंवंशवृत्तविद्याऽभिजनविशुद्धा हि राज्ञामुपाध्यायाः // 65 // राजाओं के गुरु वे होते हैं जिनका वंश विमल हो चरित्र निर्दोप हो, ज्ञान निर्मल हो और कुलीनता में किसी प्रकार का लाञ्छन न हो। शिष्टों का समादर राजा का कर्तव्य हैशिष्टेषु नीचैराचरन्नरपतिरिहलोके स्वर्गे च महीयते // 66 / / शिष्ट पुरुषों के प्रति विनम्र आचरण करनेवाला राजा इस लोक बोर परलोक में भी महत्त्व को प्राप्त करता है। राजा के द्वारा वन्दनीय व्यक्तिराजा हि परमं दैवतं नासौ कस्मैचित्प्रणमत्यन्यत्रगुरुजनेभ्यः // 6 // राजा महान् देवतास्वरूप होता है वह अपने माता-पिता आदि गुरुजनों के अतिरिक्त अन्य किसी को प्रणाम नहीं करता। - अशिष्टों की सेवा कर विद्या प्राप्ति अनुचित है स्वरमज्ञानं नाशिष्टजनसेवया विद्या // 6 // __ मूर्ख रह जाना अच्छा है किन्तु अशिष्ट पुरुषों की सेवा करके विद्या प्राप्त करना अच्छा नहीं है। . अलं तेनामृतेन यत्रास्ति विषसंसर्गः // 6 // विष-मिश्रित अमृत से क्या लाभ ? गुरु और शिष्य के आचार-विचार में समानता गुरुजनशीलमनुसरन्ति प्रायेण शिष्याः / / 70 / / शिष्यवृन्द प्रायः गुरुओं के ही शील-सदाचार के अनुगामी होते हैं। - प्रारम्भ के संस्कार भामट होते हैं(नवेषु मृद्भाजनेषु लग्नः संस्कारो ब्रह्मणाप्यन्यथा कर्तुं न शक्यते // 71 // ) . . मिट्टी के नये बर्तन में रखी गई सुगन्ध अथवा दुर्गन्धयुक्त वस्तु का संस्कार जिस प्रकार किसी तरह से भी नहीं दूर होता उसी प्रकार नवीन पात्ररूपी शिष्य में गुरु के द्वारा प्रारम्भावस्था में डाला गया संस्कार ( शीलसदाचार और ज्ञान ) ब्रह्मा के भी मिटाये नहीं मिटता।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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