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________________ विद्यावृद्धसमुद्देशः प्रहणं शास्त्रार्थोपादानम् / / 45 / / शास्त्रीय प्रसङ्गों का संग्रह करना ग्रहण गुण है / प्रारणमविस्मरणम् / / 46 // शास्त्रीय बातों को जान कर न भूलना बुद्धि का धारण नाम का गुण है / . मोहसन्देहविपर्यासव्युदासेन ज्ञानं विज्ञानम् // 47 // अज्ञान, सन्देह और प्रतिकूल बातों का खण्डन कर ज्ञान प्राप्त करना विज्ञान नामक बुद्धि गुण है। विज्ञातमर्थमवलम्ब्यान्येषु व्याप्त्या तथाविधतर्कणमूहः // 48 // ___ ज्ञात विषय की अन्यत्र व्याप्ति पर विचार करना और उसी प्रकार की अन्य कल्पनाएं करना 'ऊह' नामक बुद्धि गुण है। Gक्तियुक्तिभ्यां विरुद्धादर्थात् प्रत्यवायसंभावनया व्यावर्त्तनमपोहः // 46 // ) ज्ञान के किसी निर्णीत सिद्धान्त का किसी विरोधी अर्थ द्वारा खण्डन कर दिये जाने की संभावना में उक्ति और युक्ति के द्वारा उस विरोधी अर्थ का निराकरण करना अपोहनाम का बुद्धि गुण है। (अथवा ज्ञानसामान्यमूहो ज्ञानविशेषोऽपोहः // 52 // ) अथवा सामान्यज्ञान ऊह है और विशेष ज्ञान अपोह / / (विज्ञानोहापोहानुगमविशुद्धमिदमित्थमेवेति निश्चयस्तत्त्वाभिनिवेशः // 53 // विज्ञान, ऊहापोह और अनुगम से परिष्कृत कर 'यह ऐसा ही है' इस प्रकार का निश्चय करना तत्त्वाभिनिवेश नाम का बुद्धिगुण है।) विद्याएँ और उनके भेदयाः समधिगम्यात्मनो हितमवैत्यहितं चापोहति ता विद्याः / / 54 // जिनको जानकर व्यक्ति अपना हित पहचान सके और अहित का निवारण कर सके वे विद्याएं हैं। (आन्वीक्षिकी त्रयी वार्ता दण्डनीतिरिति चतस्रोराजविद्याः॥ 55 // (आन्वीक्षिकी अर्थात् अध्यात्म विद्या या तर्कशास्त्र त्रयी अर्थात् चारों वेद, षडङ्ग और चतुर्दश विद्याएँ, वार्ता अर्थात् कृषि पशुपालन और व्यापार तथा दोष के अनुकूल दण्ड का विधान रूप दण्डनीति, ये चार राजविद्याएं है।) . (अधीयानो आन्वीक्षिकी कार्याणां बलाबलं हेतुभिर्विचारयति, व्यसनेषु न विषीदति, नाभ्युदयेन विकायते, समधिगच्छति च प्रज्ञावाक्यवै. शारद्यम् // 56 // आन्वीक्षिकी विद्या का अध्ययत करनेवाला व्यक्ति कार्य के वलापल का
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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