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________________ 185 विवाहसमुद्देशः (शत्र के प्रदेश में भूमिपर अर्थात् पैदल, पालकी पर चढ़कर और घोड़े पर चढ़कर कमी भी प्रवेश नहीं करना चाहिए। (करिणं जपाणं वाप्यध्यासाने न प्रभवन्ति क्षुद्रोपद्रवाः // 101 // हाथी अथवा जपान ( पहाड़ी प्रदेशों में प्रसिद्ध वाहन मनुष्य की पीठ पर बंधे हुए बेंत के आसन पर चलना ) पर चढ़कर चलने से छोटे मोटे उपद्रवों की संभावना नहीं रहती।) [इति युद्धसमुद्देशः] 31. विवाहसमुद्देशः (द्वादशवर्षा स्त्री षोडशवर्षः पुमान प्राप्तव्यवहारौ भवतः // 1 // बारह वर्ष की स्त्री, सोलह वर्ष का पुरुष, यह दोनों काम सम्बन्धी व्यव. हारों को समझने योग्य हो जाते हैं। (विवाहपूर्वो व्यवहारश्चातुर्वर्ण्य कुलीनयति // 2 // विवाह-पूर्वक काम व्यवहार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्गों की सन्तान को कुलीन बनाता है। (युक्तितो वरणविधानम्, अग्निदेवद्विजसाक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाहः // 3 // _ विधिपूर्वक कन्या और वर का वरण अर्थात् अङ्गीकार या चुनाव करके अग्नि, देवता और ब्राह्मण की साक्षी में उन दोनों का परस्पर पाणिग्रहण कराने का माम विवाह है। (से ब्राह्मो विवाहो यत्र वरायालंकृत्य कन्या प्रदीयते // 4 // जिस विवाह में कन्या को सुन्दर आभूषणों से अलंकृत कर वर को दिया जाता है वह ब्राह्म विवाह है।) (स देवो विवाहो यत्र यज्ञार्थमृत्विजः कन्याप्रदानमेव दक्षिणा // 5 // - यज्ञ का विधान करके उसमें घर के रूप में वर्तमान ऋत्विज अर्थात् पुरोहित को यज्ञ की दक्षिणा के रूप में कन्यादान करना 'देवविवाह' है।) (गोमिथुनपुरः सरं कन्यादानादार्षः // 6 // गाय-बैल की जोडी देकर कन्यादान करना 'आर्ष' विवाह है। (विनियोगेन कन्याप्रदानात् प्राजापत्यः // 7 // तुम दोनों एक साथ धर्माचरण करो इस उपदेश या प्रवचन के साथ कन्यादान प्राजापत्य यिवाह है।) एते चत्वारो धा विवाहाः॥६॥ . .
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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