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________________ 164 नीतिवाक्यामृतम् राजा के चले जाने के अनन्तर जो क्रोधकर उस विजिगीषु के देश का मदन कर डाले वह पाणिग्राह' है। पाणिग्राहाद्यः पश्चिमः स ाक्रन्दः // 27 // पाणिग्राह के लक्षणों से विपरीत लक्षण जिसमें हो वह 'आक्रन्द' है। पाणिग्राहामित्रभासार आक्रन्दमित्रं च // 28 // जो पाणिग्राह का शत्रु और आक्रन्द का मित्र है वह 'आसार" संज्ञक है। अरिविजिगीषोर्मण्डलान्तर्विहितवृत्तिसभयवेतनः पर्वताटवीकृताश्रयश्वान्तधिः // 26 // जो अरि और विजिगीष इन दोनों के मण्डल के मध्यवत्ती होकर जीवन निर्वाह करे और दोनों ओर से वेतन ग्रहण करे तथा पर्वत अथवा अरण्य में निवास करे वह "अन्तधि" है। (अराजबीजी लुब्धः क्षुद्रो विरक्तप्रकृतिरन्यायपरो व्यसनी विप्रतिपन्नमित्रामात्यसामन्तसेनापतिः शत्रुरभियोक्तव्यः / / 30 / / जो राजा से न उत्पन्न हो, लोभी, क्षुद्र, विरक्त स्वभाव वाला, अन्यायी, मद्य धूत आदि दुर्गुणों का व्यसनी हो तथा जिसके मित्र, अमात्य, सामन्त और सेनापति उसके विरुद्ध हो गये हों ऐसे शत्रु पर आक्रमण कर देना चाहिए। - अनाश्रयो दुर्वलाश्रयो वा शत्रुरुच्छेदनीयः // 31 // जिसका कोई सहायक न हो या हो भी तो हीनशक्ति वाला हो तो ऐसे शत्रु का उन्मूलन कर देना चाहिए / विपर्ययो निष्पीडनीयः कर्षयेद्वा / / 32 / / शत्रु यदि मित्र बन जाय तो भी उसे विभवहीन कर दे अर्थात् उसका धन छीन ले अथवा उसे मार डाले। समाभिजनः सहजशत्रुः // 33 // अपने दायाद पट्टीदार सहज शत्रु होते हैं। (विरोधी विरोधयिता वा कृत्रिमः शत्रुः // 34 // जो किसी कारणवश विरोध करता हो या विरोध करानेवाला हो वह कृत्रिम शत्रु है। अनन्तरः शत्रुरेकान्तरं मित्रमिति नैष एकान्ततः कार्य हि मित्रत्वामित्रत्वयोः कारणं न पुनर्विप्रकर्षसन्निकर्षों // 35 // .. दूर सीमान्तवर्ती आदि राजा शत्र होते हैं और समीपवर्ती मित्र यह
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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