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________________ नीतिवाक्यामृतम् किया गया, ठीक से न पका हुआ, नीरस, और असमय का भोजन न करे। (फल्गुभुजम् , अननुकूलम् , क्षुधितम् , अतिरं च न भुक्तिसमये सन्निधापयेत् / / 40 // भोजन के समय तुच्छ पदार्थ खाने वाले कुत्ता, सूअर आदि अपने प्रतिकूल व्यक्ति अर्थात् शत्रु भाव रखने वाले मनुष्य, भूखे, और अत्यन्त क्रूर व्यक्ति को अपने पास न बैठावे। (गृहीतमासेषु सहभोजिष्वात्मनः परिवेषयेत् / / 41 / ) साथ बैठ कर खाने वाले जब ग्रास उठा लें तब अपने लिये भोजन परसे / आचार्य प्रवर का आशय यह प्रतीत होता है कि जब कुछ लोगों को अपने यहां साथ में भोजन करने के लिये बुलावे तब शिष्टता की दृष्टि से यह उचित है कि अभ्यागत लोग जब खाना प्रारम्भ कर दें तब स्वयम् अपनी थाली मंगावे या भोजन करना प्रारम्भ करे। (तथा भुञ्जीत यथा सायम् अन्येद्युश्च न विपद्यते वह्निः // 42 // भोजन ऐसा करे जिससे सायंकाल अथवा दूसरे दिन पुनः भूख लगे / अर्थात् इतना अधिक भोजन न करे कि शाम को अथवा दूसरे दिन भूख ही न लगे। नि भुक्तिपरिमाणे सिद्धान्तोऽस्ति // 43 / / ) भोजन की मात्रा के विषय में कोई सिद्धान्त नहीं हैं / अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति कितना भोजन करे इसका कोई सिद्धान्त नहीं है / : वह्नथभिलाषायत्तं हि भोजनम् / / 44 // ) भोजन अग्नि की अभिलाषा के अधीन है / अर्थात् जितनी भूख हो उतना भोजन करे। अतिमात्रभोजी देहमग्निश्च विधुरयति // 45 // अधिक मात्रा में भोजन करनेवाला व्यक्ति अपनी देह और जठराग्नि का . विनाश कर देता है। (दीप्तो वह्निर्लधुभोजनाद् बलं क्षपयति / / 46 // प्रदीप्त अग्नि में थोड़ा भोजन करने से बल का ह्रास होता है / अर्थात् जिसकी खुराक बहुत ही उसे यदि फम भोजन मिलेगा तो उसका बल घट जायगा। (अत्यशितुर्दुःखेनान्नपरिणामः // 47 // बहुत खाने वाले का भोजन कठिनता से पचता है। . भ्रमातस्य पानं भोजनं च ज्वराय छर्दये वा // 48 //
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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