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________________ बलसमुद्देशः 113 . सेना का सातवां विशेष भेदअथान्यत् सप्तमम् औत्साहिकं बलं यद्विजिगीषोविजययात्राकाले परराष्ट्रविलोडनार्थमेव मिलति / / 13 / / / इनके अतिरिक्त सातवीं सेना ओत्साहिक सेना है जो जयाभिलाषी पुरुष के यात्राकाल में शत्रुराष्ट्र के मङ्गकर देने के ही लिये सङ्गठित होती है / ) औत्माहिक सेना के गुण(क्षत्रसारत्वं, शस्त्रज्ञत्त्वं, शौर्यसारत्वम् , अनुरक्तत्वचेत्यौत्साहिकस्य गुणाः // 14 // क्षत्रिय राजपूतों की प्रधानता, शस्त्र निपुणता, पराक्रम प्रधान होना, और स्वामी पर अनुरक्त होना यह औरसाहिक सैन्य के गुण हैं।) उक्त छ: प्रकार की सेना के साथ व्यवहार का वर्णन(मौलबलाविरोधेनान्यद् बलम् अर्थमानाभ्यामनुगृह्णीयात् / / 15 // मोल अर्थात् वांशिक योद्धाओं की सेना के सम्मान का ध्यान रखते हुए अन्य प्रकार की सेनाओं को धन दान और सम्मान से अनुगृहीत करे / ) मौलाख्यमापद्यनुगच्छति दण्डितमपि न दुष्यति, भवति चापरेषामभेद्यम् / / 16 // मौल वर्ग की सेना आपत्तिकाल में भी स्वामी का अनुसरण करती है, दण्डित होने पर भी विद्रोह नहीं करती, और शत्रु के द्वारा अभेद्य होती है। (न तथार्थः पुरुषान् योधयति यथा स्वामिसम्मानः // 17 // पुरुष धन प्राप्ति के कारण युद्ध में उतनी रुचि के साथ नहीं प्रवृत्त होता जितना कि स्वामी के द्वारा प्राप्त सम्मान से / ) सेना की विरक्ति के कारणस्वयमनवेक्षणम्', देयांशहरणं, कालयापना, व्यसनाप्रतीकारो, विशेषविधावसंभावनञ्च तन्त्रस्य विरक्तिकारणानि // 18 // राजा की सेना की विरक्ति के कारण होते हैं-राजा का स्वयं सेना की देख-भाल न करना, उनको दातव्य अंश का अपहरण कर लेना, समय टालना, उनके आपत्ति ग्रस्त होने पर उसका कोई उपाय न करना, और विवाह वादि शुभावसरों पर उनका यथोचित सम्मान न करना। सेना का स्वयं निरीक्षण आवश्यकस्वयमवेक्षणीयं सैन्यं परैरवेक्षयन्नर्थतन्त्राभ्यां परिहीयते // 16 // : स्वयं द्रष्टव्य सेना का दूसरों से पर्यवेक्षण कराने से राजा अर्थ घोर संन्य बल से क्षीण हो जाता है। नी०
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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