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________________ 108 नीतिवाक्यामृतम् शत्रु का दुर्ग जीतने के उपायउपायतो गमनम् , उपजापश्चिरानुबन्धोऽवस्कन्दतीक्ष्णपुरुषोपयोग. श्चेति परदुर्गलम्भोपायाः॥६॥ सामादिक उपाय से शत्रु के किले तक पहुंच जाना, वहाँ के आदमियों और अधिकारियों को फोड़ना, बहुत दिनों तक घेरा डाले रहना, और आक्र. मण के लिये तीक्ष्ण अर्थात् घातक पुरुषों का उपयोग करना यह सब शत्रु के दुर्ग को जीतने के उपाय हैं। दुर्ग प्रवेश और निगम के नियमनामुद्रहस्तोऽशोधितो वा दुर्गमध्ये कश्चित् प्रविशेनिर्गच्छेद्वा / / 7 // प्रवेश अथवा निर्गम पत्र लिये बिना एवम् असंशोधित अर्थात् तलाशी दिये लिये बिना कोई भी व्यक्ति न तो किले में प्रविष्ट हो न बाहर निकले / श्रूयते किल हूणाधिपतिः पण्यपुटवाहिभिः सुभटैः चित्रकूट जग्राह // 8 // ऐसा प्रसिद्ध है कि हणों के अधिपति ने व्यापारियों के वेश में अपने महान् योद्धाओं को भेज कर चित्रकूट पर अधिकार प्राप्त कर लिया था। खेटकखड्गधरैः सेवार्थ शत्रणा भद्राख्यं काञ्चीपतिमितिः // 6 // सेवकों के रूप में अपने लट्ठधारी और खड्गधारी योद्धाओं को भेजकर शत्रु ने भद्र नाम के काञ्चीपति को अपने अधीन कर लिया था। [इति दुर्गसमुद्देशः] 21. कोशसमुद्देशः कोश शब्द का अर्थयो विपदि सम्पदि च स्वामिनस्तन्त्राभ्युदयं कोशयति संश्लेषयतीति स कोशः / / 1 // दुःख और सुख के समय में जो स्वामी के सैन्यबल को समृद्ध कर सकता है यह कोश है। ___ कोश के गुण - सातिशयहिरण्य रजतप्रायो, व्यावहारिकपिण्याकबहुलो महापदि व्ययसहश्चेति कोशगुणाः / / 2 / ) अत्यधिक सोना चांदी से संयुक्त होना, व्यवहारोपयोगी प्रचुर सिक्कों अशर्फी आदि का होना, और महान् आपत्ति के अवसर पर व्यय के निमित्त प्रचुर धन का मिल सकना, यह कोश के गुण हैं।
SR No.004293
Book TitleNitivakyamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomdevsuri, Ramchandra Malviya
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1972
Total Pages214
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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