________________ 164 जीतकल्प सभाष्य 1559. सा पुण छसु' णातव्वा, सचित्तमीसा तहेव अच्चित्ता। एत्थ वि जह णिक्खित्ते, भंगा संजोग तह चेव / / 1560. सच्चित्तमीस आदिल्लगेसु दुसु णत्थि मग्गण विवेगो' / ततियम्मि मग्गणा तू, छसु भोमादीसु साहरणे // 1561. चरिमे भंगे भयणा, जं दुहमच्चित्त का तहिं भयणा?। भण्णति सुणसू तहियं, चउभंगो होति इणमो तू॥ 1562. सुक्के सुक्कं पढम, सुक्के उल्लं तु 'बितियओ भंगो"। उल्ले सुक्खं ततिओ, उल्ले उल्लं चतुत्थो तु॥ 1563. एक्केक्के चउभंगो, सुक्कादीएसु चउसु भंगेसु। थोवे थोवं थोवे, बहुयं 'बहु थोव बहु बहुगं"। 1564. जत्थ तु थोवे थोवं, सुक्खे' उल्लं च छुभति तं गेझं। जइ तं तु समुक्खित्तुं, थोवाहारं दलति मन्नं // 1565. सेसेसू तीसुं पी, दाता भंगेसु होति. णातव्वो। थोव बहु' बहुग थोवो, बहु बहुगो चेव इणमो तु॥ 1566. उक्खेवे णिक्खेवे, महल्लभाणम्मि लुद्ध वध * डाहो। - छक्कायवधो 'य तहा", अचियत्तं चेव वोच्छेदो' / 1567. थोवे थोवं छूटं, सुक्खे उल्लं 'तु उल्लें सुक्खं तु / बहुगं तु अणाइण्णं, कडदोसो सो त्ति काऊणं // 1568. साहरणेतं भणितं, आवत्ती दाण जह तु णिक्खित्ते / दायगदारं अहुणा, समासतो हं . पवक्खामि // 1569. बाले वुड्ढे मत्ते, उम्मत्ते वेविते य जरिते य। अंधेल्लए पगलिते, आरूढे पाउयाहिं च // 1. च्छसु (ता, पा)। 2. तहेव (ता, ब)। 3. बितिय चउभंगो (पिनि 263/1) / 4. विवरीत दो अन्ने (पिनि 263/2) / 5. सुक्खं (पा, ब, ता), सुक्के (पिनि)। 6. अन्नं (पिनि 263/3) / 7. बहुं (मु)। 8. x (ला)। 9. पिनि (264) में इस गाथा का उत्तरार्ध इस प्रकार है अचियत्तं वोच्छेदो छक्कायवहो य गुरुमत्ते। १०.च तं तु आइन्नं (पिनि 264/1). ११.पिनि 265 /