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________________ वृद्धि का अभिलेखे 81 अन्तर पर, जो कि एक से दस सेकेण्ड तक होता है, घूमता रहता है। अभिलेख-पट्ट समान गति से पार्वतः (Laterally) चलता रहता है / इस प्रकार वृद्धि की वक्र रेखा मिल जाती है। उद्दीपना-वस्तु, जो वृद्धि की गति को बढ़ाती है, वक्र रेखा को ऊपर की तरफ उठाती है। दूसरी तरफ घटाने वाली वस्तु, रेखा के ढलाव को कम कर देती है। उच्च आवर्धन की इस प्रणाली ने वृद्धि के बहुत-से रोचक लक्षणों को प्रकट किया है जिनका अभी तक विचार भी नहीं आया था। इसने वनस्पति तथा दूसरी वस्तुओं की वृद्धि-सम्बन्धी स्वतः क्रियाओं में मूलगत समानता के तथ्य को भी प्रमाणित कर दिया है। वृद्धि के स्पन्दन दूसरी स्वतः क्रियाओं की ही तरह वृद्धि लयबद्ध या स्पन्दित होती है / यह चित्र 48 में दिये गये अभिलेख से स्पष्ट हो जाता है। इसमें पहले अभिलेख अकस्मात ऊपर की ओर उठता है फिर धीरे-धीरे घूम जाता है। लौटने को मात्रा ऊपर उठने चित्र ४८-उच्च प्रवर्धन-वृद्धिलेखी द्वारा लिया गया वृद्धि-स्पन्दन का अभिलेख / वाली मात्रा की करीब एक चौथाई होती है। इन दोनों की जो भिन्नता है, वही स्थायी वृद्धि का प्रतीक है। इस प्रकार वृद्धि की विधि स्थिर नहीं है। यह ज्वार की लहरों की तरह है।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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