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________________ 52 वनस्पतियों के स्वलेखे पौधे को लिटाकर रख दें, तो कुछ ही दिनों में देखेंगे कि उसका स्तम्भ और पत्तियां पृथ्वी के खिंचाव के विपरीत ऊपर की ओर उठ जायेंगी। इसीलिए भम्यावर्ती प्रतिक्रिया को वनस्पति के ऊतकों की आतति (Tension). को परास्त करना पड़ता है। जब ये दोनों प्रतिकारी शक्तियाँ एक-दूसरे को संतुलित करती हैं तभी साम्यावस्था प्राप्त होती है। संपरीक्षणों से यह ज्ञात हुआ कि तापमान के परिवर्तन से भूम्यावर्ती प्रतिक्रिया में थोड़ा परिवर्तन आ जाता है। तापमान में वृद्धि भम्यावर्ती झुकाव को कम करती है तथा तापक्रम का पतन उसे बढ़ाता है। इस प्रकार तापमान की वृद्धि या पतन से एक या दूसरी दिशा में प्रवैगिक संतुलन (Dynamic balance) उलट जाता है और यही ऊपर और नीचे की दैनिक गति का कारण होता है। ... सिद्धान्ततः तो सभी नत अंगों को, जो गुरुत्वाकर्षण जनित उद्दीपना के प्रति संवेदनशील हैं, तापमान के परिवर्तन के साथ ही विशिष्ट गति प्रदर्शित करनी चाहिये। क्षतिज (Horizontally) फैली हुई वृक्ष की पत्तियाँ भी गुरुत्वाकर्षण की उद्दीपना से प्रभावित हैं, क्या ये भी "प्रार्थना करने वाले ताड़ वृक्ष", की ही तरह दैनिक गति प्रदर्शित करती हैं ? स्वतः अभिलेखक यह संपरीक्षण एक स्वतः अभिलेखक द्वारा किया गया, जो विशेष रूप से इसी काम के लिए बनाया गया था। इस यन्त्र में चार अभिलेखक उत्तोलक (लीवर) थे। पहले तीन उत्तोलक भिन्न-भिन्न पौधों की पत्तियों (या उनकी क्षतिज शाखाओं) की गति का अभिलेख लेते हैं और चौथा उत्तोलक एक धात्वीय तापमापी (Metallic thermometer) द्वारा तापमान के परिवर्तन का अभिलेख लेता है (चित्र 34) / काँच का धूमित पट्ट पन्द्रह-पन्द्रह मिनट के अन्तराल पर घंटीचक्र के द्वारा प्रदोलित होता था। इस प्रकार चार अभिलेख एक साथ होते थे-सबसे ऊपर वाला होता था ताप-लेख (Thermografh) और बाकी तीन भिन्न-भिन्न पर्णों के उद्पादप लेख (Phytographs) / पर्ण-स्वलेख अभिलेख से ज्ञात होता है कि पत्तियां सतत गतिशील रहती हैं और सबकी सब तापमान के पतन से ऊपर उठती हैं और उसकी वृद्धि से गिरती हैं। फिर भी वनस्पति की प्रत्येक जाति की अपनी विशिष्ट प्रकृति होती है, जो उसके विशिष्ट प्रकार के स्वलेख से विदित होती है (चित्र 35) / पपीता के कम्पित अभिलेख को देखिये !
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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