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________________ 26 वनस्पतियों के स्वलेख सक्रिय पदार्थ की उपस्थिति और उसके आपेक्षिक वितरण पर निर्भर रहती है (चित्र 15) / लाजवन्ती का पीनाधार इस प्रकार कार्यशीलता में सक्रिय जन्तु-पेशी की ही तरह माना जा सकता है। सब प्रकार की गतिशीलता अन्ततः जारण या दहन की क्रिया पर निर्भर है। एक इंजन में गति शील मशीनरी का वेग ईंधन के उपभोग की मात्रा के अनुपात में होता है। दहन की मात्रा जितनी ही अधिक होगी, गति भी उतनी ही अधिक वेगवती होगी। इसी प्रकार जीवित यन्त्र में भी तीव्र गति के लिए दहन की मात्रा महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुत मामले में उपस्थित सक्रिय वस्तु अत्यधिक जारणीय है। अनुक्रिया की विभिन्नता अब हम परिवर्तित बाह्य परिस्थितियों में वनस्पति की अनु क्रिया की विभिन्नता का अध्ययन करेगे। पिछले परिच्छेद में यह दिखाया गया था कि वनस्पति की प्रतिक्रिया किस प्रकार प्राणी की, और यहाँ तक कि मनुष्य की प्रतिक्रिया से मिलती-जुलती है, किस प्रकार हमारी ही तरह उन पर भी प्रकाश और अन्धकार, ऊष्मा और शीत तथा विश्राम और थकान का प्रभाव पड़ता है। और भी कुछ कारक हैं जिनका हम पर काफी प्रभाव पड़ता है, उदाहरणार्थ, जिस हवा में हम साँस लेते हैं, उसकी शुद्धता और अशुद्धता। फिर बहुत-सी ऐसी औषधियाँ हैं जिनका हम पर एक खास तरह का प्रभाव पड़ता है, जो कभी लाभकर और कभी हानिकर होता है। उदाहरणार्थ, हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसी को लें। नगर की दूषित वायु हममें अवसाद उत्पन्न करती है और पूरे स्वास्थ्य के सामान्य स्तर को नीचे गिरा देती है / किन्तु दूसरी ओर यदि हम खुले देहातों की ओर जायँ तो वहाँ की या चीड़-वृक्षों के नीचे की प्रजारक वायु हमारे खोये हुए स्वास्थ्य और शक्ति को फिर लौटा देती है। एक वायुहीन बन्द कमरे की हानि और उचित संवातन की आवश्यकता को सोचिये। मनुष्य की बुरी आदतों की ओर भी ध्यान दीजिये / किस प्रकार उसे सुरा की आदत पड़ जाती है और किस प्रकार सुरा उसका अन्त कर देती है। फिर विभिन्न प्रकार के प्रमीलकों (Narcotics) को ही लीजिये, जिनका प्रयोग हम नींद लाने के लिए या सर्जन की छुरी से बेखबर बने रहने के लिए करते हैं। इन औषधियों में से कुछ, जैसे कि ईथर, लगभग खतरनाक नहीं होती क्योंकि इनसे मनुष्य को बेहोश करने के बाद वाष्प को उड़ाकर चेतना लौटायी जा सकती है।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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