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________________ 201 वनस्पति में प्रतिवर्त चाप की खोज यह आवेग संवेदी आवेग से स्पष्टतः भिन्न है। मैंने पाया है कि ये दोनों आवेग दो विभिन्न तंत्रिकाओं द्वारा संवाहित हैं; अभिवाही या संवेदी प्रेरणा बाह्य तंत्रिका द्वारा और mmm AM चित्र १२०-आवेग के परावर्तन का आरेख / (A), अधः पर्णवन्त को मध्यम उद्दीपना / (1) इससे अधिवाही आवेग द्वारा पर्ण गिर जाते हैं (चित्र में दृश्य नहीं है ) / स्थूलाधार से अधिवाही आवेग, अपवाही आवेग की तरह परावर्तित होते हैं, जिसके द्वारा अधः पर्णवृन्त पर पत्तियों की अनुक्रिया होती है। (2) अधिवाही आवेग सतत तीर द्वारा और अपवाही बिन्दुमय तीर द्वारा संकेतित है। अपवाही या प्रेरक आन्तरिक तंत्रिका द्वारा। यही उस जाँच का उत्तर है जिसका सम्बन्ध वाहिनी-बंडल में दो तंत्रिकाओं की उपस्थिति के महत्त्व से है। प्रथम अधः पर्णवृन्त में तीव्रतर उद्दीपना देने पर पारेषित प्रभाव अधिक विस्तृत रूप से किरणायित होता है और अधः पर्णवृन्त क्रमिक रूप से अनुक्रिया प्रदर्शित करते हैं / उद्दीपना की बढ़ती हुई तीव्रता में लाजवन्ती-तत्रिका की अभिक्रिया के ये लाक्षणिक चिह्न प्राणी-तंत्रिका की अभिक्रिया के समान हैं और यह विस्मयकारी है। प्राणी-तंत्रिका की अभिक्रिया में उद्दीपना की बढ़ती हुई तीव्रता द्वारा आवेग अधिकतर तंत्रिका-कोशिकाओं में फैलता है और अधिक विस्तृत अनुक्रिया दिखाता है।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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