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________________ पौधे की तंत्रिका 181 इंच चौड़ा कपड़ा बाँध दिया गया, और पोटैसियम साइनाइड का विषमय घोल उस पर डाला गया। इसका प्रभाव इतना अधिक हुआ कि पाँच मिनट से कम समय में ही संवाहक शक्ति नष्ट हो गयी। आघात की तीव्रता आठ गुनी बढ़ाने पर भी कोई चित्र १०८-पोटैसियम साइनाइड की क्रिया द्वारा संवाहिता को समाप्ति / (1) स्वाभाविक अभिलेख; (2) 5 मिनट की उद्दीपना के बाद संवाहन की समाप्ति; (3) तीव्र उददीपना देने पर भी आवेग की समाप्ति का अभिलेख; (4) प्रत्यक्ष उद्दीपना का अभिलेख / अन क्रिया नहीं हुई। पीनाधार की प्रत्यक्ष उद्दीपना द्वारा पता चला कि उसकी गतिशीलता में कोई परिवर्तन नहीं हुआ (चित्र 108) / एलेक्ट्रानीय (Electronic) बाधा--ऊपर की घटना में संवाहिता सदा के लिए नष्ट हो गयी, प्राणी की तंत्रिका में, जैसा पहले ही कहा गया है, संवाहन-मार्ग में सतत विद्युत्-धारा बनाये रखने पर एक अस्थायी बाधा होती है। जब तक विद्यत-धारा रहती है बाधा बनी रहती है और बाधा देने वाली धारा के बन्द करते ही संवाहनशवित पृनजीवित हो जाती है। लाजवन्ती में भी एक इसी प्रकार का परिणाम हुआ; बाधा 'B' पर रखी गयी और बाद में हटा दी गयी। ऐसा दो बार किया गया और चित्र 106 के अभिलेख से यह पता चलता है कि जब भी बाधक धारा दी जाती उत्तेजना का पारेषण स्थिर रूप से रुक जाता था और धारा के रोक देने पर पुनः स्थापित हो जाता था। _ विद्युत्-धारा द्वारा ध्रुवीय उत्तेजना मैं अब प्राणी और वनस्पति में उत्तेजना के पारेषण के समान रूप को प्रमाणित करने के लिए निश्चित साक्ष्य प्रस्तुत करूंगा।
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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