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________________ 158 वनस्पतियों के स्वलेख रस-दाब में परिवर्तन होता है-के सम या विषम आघातों के अवलोकन का भी बड़ा अनूठा अवसर मिलता है / अब ऐसे परिणामों का वर्णन किया जायगा जो इस महत्त्वपूर्ण सामान्यीकरण को प्रतिष्ठापित करता है, कि जो उत्तेजनशील अभिकारक उत्कर्ष की गति को बढ़ाता है वह ऐसा स्पन्दन उत्पन्न कराता है जिसका ऊपरी आघात नीचे के आघात से बड़ा होता है / दूसरी ओर एक प्रावसादक अभिकारक, संघटक स्पन्दनों में ऐसा परिवर्तन करता है जिससे नीचे का आघात ऊपरी आघत से बडा हो जाता है। इसलिए स्पन्द-अभिलेख द्वारा अभिकारक का उद्दीपक या प्रावसादक स्वभाव शीघ्र ज्ञात हो जाता है। इस प्रेक्षण-प्रणाली की संवेदन: शीलता अत्यधिक बड़ी है। उदाहरण के लिए एक उद्दीपक अभिकारक के कार्य को लिया जाय / इसका तात्कालिक प्रभाव है--बृहत् ऊपरी आघात के पश्चात् एक दुर्बल निम्नाघात। यह प्रभाव तब तक तीव्रता से बढ़ता जाता है जब तक ऊपरी आघात का विस्तार इतना नहीं बढ़ जाता कि अभिलेख को पट्ट से हटा दे। स्पन्दन की आवृत्ति इतनी बढ़ जाती है कि प्रत्येक स्पन्दन एक-दूसरे में लुप्त हो जाता है / प्रावसादक ठीक विपरीत परिवर्तन करता है। इस विवर्तन में प्रत्येक स्पन्दन के आचरण का परिवर्तन बहुत रोचक है / अभी तक बढ़ता हुआ दाब अब घटने लगता है। कुछ हिचक के बाद निम्न-आघात प्रधान हो जाता है। इस प्रकार के संघटक-स्पन्दनों की एक श्रृंखला अधोगामी वक्र बनाती है जो दाब के प्रेरित ह्रास को प्रदर्शित करता है। - ऐलकालायडों की विशिष्ट क्रिया / ऐलकालायड प्राणी के हृत्स्पन्द पर विशिष्ट प्रभाव डालते हैं। सुविधा के लिए इन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है--(१) उद्दीपक जो सक्रियता को बढ़ाता है, (2) प्रावसादक जो निष्क्रिय करता है, (3) उद्दीपक प्रावसादक जो लघु मात्रा में उद्दीपन करते हैं और सीमित दीर्घ मात्रा में निम्नन। प्राणी के हृदय में सक्रियता के परिवर्तनों का पता लगाने के लिए हृत्स्पन्दलेखी रुधिरदाब-लेखी से अधिक प्रत्यक्ष और संवेदनशील है। किंतु पौधे के हृत्स्पन्द का अभिलेख लेने वाला यंत्र केवल चुम्बकीय रुधिर-दाब-लेखी है / प्राणी और वनस्पति में कतिपय ऐलकालायडों के प्रभावों की समानता निम्नांकित सारणी से प्रदर्शित होगीप्रभाव प्राणी हृत्स्पन्द लेखी | . वनस्पति रुधिर-दाब-लेखी बढ़ा हुआ रस-दाब / स्पन्द का उद्दीपक वधित आवृत्ति ऊपरी आघात निम्नाधात से बड़ा प्रावसादक | घटी हुई बारंबारता | घटा हुआ रस-दाब / निम्नाघात, ऊपरी आघात से बड़ा
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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