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________________ प्रणोदक ऊतक 137 कोशिकाओं के अदृश्य स्पन्दनों को दृश्य बनाता है। चित्र 77 में आम्र वृक्ष के स्पन्दित स्तर के विद्युत-स्पन्दनों का अभिलेख है। हृदय-गति की परीक्षा इसका क्या प्रमाण है कि ये विद्युत-स्पन्दन यथार्थ में पौधे में हृदय की धड़कन के समान हैं ? हृदय की विशेष गति को विभाजित करने के लिए अनेक संपरीक्षण हैं, जिनमें से ये ही यथेष्ट हैं--(१) जब आन्तरिक रक्त-दाब मन्द हो, हृदय का स्पन्दन रुक जाता है, और आन्तरिक दाब की वृद्धि होने पर स्पन्दन पुनः होन लगता है, (2) स्पन्दन, हृदय की अवनमन (Depressed) या उपबल्य (Subtonic) दशा में भी रुक जाता है; तब उद्दीपना द्वारा हृत्स्पन्दन का पुनरुन्नयन होता है, (3) क्लोरोफार्म की तरह के निश्चेतक आरम्भ में हृदय को उद्दीपना देते हैं किन्तु दीर्घ निश्चेतना के पश्चात् यह एकदम रुक जाता है और इसके बाद प्राणी की मृत्यु हो जाती है। मैं अब दिखाऊँगा कि वनस्पति की स्पन्दन-अनुक्रिया प्राणी की स्पन्दन-अनुक्रिया के समान होती है। कम और अधिक दाब के प्रभाव शुष्कता में रस का दाब बहुत घट जाता है / इसका परिणाम यह होता है कि प्रेरक स्तर का स्पन्दन रुक जाता है। सींचने के बाद रस के दाब में वृद्धि होती है और रुका हुआ स्पन्दन पुनः होने लगता है / मैं प्रेरक स्तर के विद्युत-स्पन्दन पर क्रम से जल का देना बन्द करने और सींचने के प्रभाव को दिखाऊँगा / शुष्कता में स्पन्दन का बार-बार निम्नन और जल देने पर पुनरुन्नयन होता है (चित्र 78) / उपबल्य (Sub-tonic) स्थिति का प्रभाव ... जब पौधे को चौबीस घंटे के लिए अन्धकार में रखा जाता है, वह इतना, उपबल्य हो जाता है कि रस-उत्कर्ष को बनाये नहीं रह सकता / प्रकाश या विद्युत-आघात द्वारा उत्कर्ष का पुनरुन्नयन होता है। इस परिवर्तन का आधारभूत कारण क्या हो सकता है ? विद्युत-स्पन्दनों के अभिलेख इसको स्पष्ट करते हैं। इनसे विदित होता है कि जब दीर्घ अन्धकार द्वारा स्पन्दन प्रायः रुक जाता है, तब विद्युत-आघात या प्रकाश की उद्दीपना द्वारा धड़कन पुनः होने लगती है और उद्दीपना के बन्द होते ही फिर रुक जाती है (चित्र 76) / निश्चेतकों का प्रभाव यह स्पष्ट कर दिया गया है कि कैसे क्लोरोफार्म अपने प्रयोग की पहली अवस्था में हृदय की क्रिया को बढ़ा देता है और इसकी सतत क्रिया किस प्रकार उसका निम्नन
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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