SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रस का उत्कर्ष 131 एक लघु मात्रा के प्रभाव द्वारा गिरना रुक गया और इसके पश्चात् पर्ण उठने लगा (चित्र 72) / इसलिए यह अनुमान किया जा सकता है कि पर्ण को रस का मिलना एक स्थिति में घट गया और दूसरी में बढ़ गया। प्रतिकारकों ने उन कोशिकाओं को अवश्य प्रभावित किया होगा जिनके द्वारा रस का मिलना सम्भव है। शुष्कता का प्रभाव पर्ण के गिरने से प्रदर्शित हुआ / यहाँ भी संभवतः संचालक कोशिकाओं के तरल-स्थैतिक दाब के घटने से रस-उत्कर्ष में अवश्य बाधा हुई होगी। रस-उत्कर्ष की गति के क्रमिक उतार-चढ़ाव पर शीतल और उष्ण जल के प्रभाव को अभिलेख में स्पष्ट प्रदर्शित किया गया है (चित्र 73) / ईथर के मिश्रण द्वारा उत्कर्ष को गति में वृद्धि हुई और पर्ण द्रुत गति से उठने लगा। क्लोरोफार्म की क्रिया द्वारा पहले उद्दीपना किन्तु फिर अवनमन का प्रभाव, पर्ण के पहले उठने और बाद में तेजी से गिरने से स्पष्ट प्रदर्शित हुआ। चित्र ७३--आरोह की गति के निम्नन (निम्न मोड़) में (C) शीतलता और वृद्धि (ऊपरी मोड़) में (H) ऊष्मता देने का प्रभाव / __ इस अध्याय में सिद्ध किये गये कुछ तथ्यों की संक्षेपावृति कर ली जाय / वनस्पति में विष के प्रयोग से पहले रस-उत्कर्ष का रुकना और फिर स्थायी रूप
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy