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________________ प्रकृति में वनस्पति की गति 106 रूप से अपने लाभ के लिए गति का निश्चय करता है। इस प्रकार की साध्यवादपरक (Teleological) कल्पना तो इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं हुई / विविध गतियों को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न वर्णनात्मक वैज्ञानिक वाक्यांश काम में लाये गये हैं, जैसे सकारात्मक सूर्यावर्तन (Positive heliotropism) जब अंग प्रकाश की ओर मुड़ता है, नकारात्मक सूर्यावर्तन (Negative Heliotropism) जब प्रकाश से विपरीत दिशा में मड़ता है। इसी प्रकार सकारात्मक और नकारात्मक भ-अभिवर्तनीयता (Geotropism) विभिन्न अंगों द्वारा पृथ्वी की ओर और उससे विपरीत दिशा में जाने की गति के लिए काम में लायी गयी है। लेकिन यह न समझना चाहिये कि ये वर्णनात्मक वैज्ञानिक वाक्यांश घटनाओं को यथार्थ रूप से स्पष्ट करते हैं। बेलिस (Bayliss) ने अपनी शरीरविज्ञान विषयक पुस्तक में इसके प्रतिवाद में लिखा है--"ऐसे वर्णनात्मक वैज्ञानिक वाक्यांशों का दुरुपयोग अनिष्टकर भी हो सकता है, क्योंकि इससे ऐसा विश्वास बद्धमूल हो सकता है कि जब कोई घटना अंग्रेजी (या दैनिक व्यवहार की कोई भी भाषा) में न कही जाकर किसी शास्त्रीय भाषा (जैसे लैटिन या ग्रीक) में कही जाय तो यह किसी नये ज्ञान की प्राप्ति का द्योतक है।" वनस्पति की विविध गतियों की एक विचारशील व्याख्या सम्भव हो सकती है। यथार्थ में इस समस्या की जटिलता विविध कारकों की सामूहिक क्रिया में निहित है, जिनकी वैयक्तिक प्रतिक्रियाएँ हमें ज्ञात नहीं हैं। - इस विषय में दो प्रश्नों के विषय में अनुसन्धान करना है, जैसे विभिन्न उद्दीपनाओं की प्रतिक्रियाएँ और एक पार्श्वगत उद्दीपना से उत्पन्न मोड़। ... उद्दीपना की विभिन्न प्रणालियों के प्रभाव की अनिश्चितता के कारण अधिक भ्रम उत्पन्न हो गया है। उदाहरणार्थ, स्पर्श की उद्दीपना प्रकाश की उद्दीपना से स्पष्टतः भिन्न अभिक्रिया दिखायेगी। ऐसी विशिष्ट अभिक्रियाएँ विभिन्न उद्दीपनाओं के लिए मान ली गयी हैं। सच तो यह है कि कोई ऐसी भिन्नता नहीं है। पहले एक अध्याय में दिये गये निष्कर्ष यह स्पष्ट करते हैं कि सब प्रकार की एक ही तीव्रता की प्रत्यक्ष उद्दीपना यथार्थ या प्रारम्भिक संकुचन करती है। उदाहरणार्थ, बढ़ते हुए पौधे में यह प्रारम्भिक संकुचन वृद्धि की गति का कम होना प्रदर्शित करता है। मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि किस प्रकार विभिन्न उपकल्पनाओं द्वारा बाह्य उद्दीपना अन्तर के संवेदनशील ऊतकों तक पहुँच जाती है, और प्रायः वधित तीव्रता के साथ (चित्र 101) /
SR No.004289
Book TitleVanaspatiyo ke Swalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Vasu, Ramdev Mishr
PublisherHindi Samiti
Publication Year1974
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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