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________________ 233 नीम (१४)-चर्मरोग पर -- नीम का तेल लगाना चाहिए / (15) पित्तज वातरक्त पर-बारह वर्ष तक नीम के नीचे रहना तथा उसकी लकड़ी से भोजन बनाकर खाना चाहिए। (16) श्वासरोग में-नीम का तेल तीस बूंद तक खाकर पान खाना चाहिए। (17) विषूचिका में-नीम की तेल के मालिश करें। (18) फोड़े पर-नीम की पत्ती का बफारा दें। (16) घाव में कीड़ा पड़ जाने पर-नीम का तेल लगाना चाहिए। (20) सन्धिवात पर-नीम का तेल लगाएँ / (21) दाँतों के कीड़ों पर-नीम का तेल लगाएँ। र (22) कर्णरोग में-नीम का तेल और शहद छोड़ें। (23) मस्तक के कीड़ों पर-नीम का रस और तिल का तेल मिलाकर नाक में छोड़ना चाहिए। . ( 24 ) कुष्ठरोग में-नीम के पंचांग का चूर्ण छः माशे तक चालिस दिन तक सेवन करना चाहिए / (25) सिकतामेह पर-नीम की अन्तरछाल का काढ़ा पीना चाहिए। (26) कामला रोग में नीम के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए। (27) नासूर में नीम का रस छोड़ना चाहिए /
SR No.004288
Book TitleVanaspati Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHanumanprasad Sharma
PublisherMahashakti Sahitya Mandir
Publication Year1933
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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