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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 38 सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य // 29 // ननु असिद्धत्वात्केवलस्य विषयनिबन्धकथनं न युक्तमित्याशंकायामिदमाहकेवलं सकलज्ञेयव्यापि स्पष्टं प्रसाधितम् / प्रत्यक्षमक्रमं तस्य निबन्धो विषयेष्विह // 1 // बोध्यो द्रव्येषु सर्वेषु पर्यायेषु च तत्त्वतः। प्रक्षीणावरणस्यैव तदाविर्भावनिश्चयात् // 2 // आत्मद्रव्यं ज्ञ एवेष्टः सर्वज्ञः परमः पुमान् / कैश्चित्तद्व्यतिरिक्तार्थाभावादित्यपसारितं // 3 // द्रव्येष्विति बहुत्वस्य निर्देशात्तत्प्रसिद्धितः। वर्तमानेऽस्तु पर्याये ज्ञानी सर्वज्ञ इत्यपि // 4 // जीव आदि सम्पूर्ण द्रव्यों और उनकी सम्पूर्ण पर्यायों में केवलज्ञान का विषय नियत है॥२९॥ असिद्ध होने से केवलज्ञान के विषय नियम का कथन करना युक्त नहीं है, इस प्रकार की आशंका होने पर श्री विद्यानन्द आचार्य कहते हैं - विशद सम्पूर्ण ज्ञेयों में व्यापक युगपत् सकल पदार्थों को जानने वाला प्रत्यक्ष केवलज्ञान है। उसकी पूर्व प्रकरणों में सिद्धि कर दी है अतः उस केवलज्ञान का विषयों में नियम करना इस प्रकरण में समुचित ही है॥१॥ जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन सम्पूर्ण द्रव्यों में तथा इन द्रव्यों की सम्पूर्ण भूत, वर्तमान और भविष्यत्काल की अर्थपर्यायों तथा व्यंजनपर्यायों में परमार्थ रूप से केवलज्ञान का विषय समझ लेना चाहिए। जिस मनुष्य के सम्पूर्ण ज्ञानावरण कर्मों का प्रकृष्टरूप से क्षय हो गया है, उस आत्मा के ही उस सबको जानने वाले केवलज्ञान का प्रादुर्भाव होता है। यह सिद्धान्त निश्चित है।।२।। ___ आत्मा से अतिरिक्त घट, पट आदिक अर्थों का अभाव होने से किन्हीं ब्रह्माद्वैतवादियों ने परमपुरुष और सबको जानने वाले ज्ञातास्वरूप अकेले आत्म द्रव्य को ही अभीष्ट किया है अत: अद्वैत आत्मा ही एक तत्त्व है। ___इस प्रकार अद्वैतवादियों के मत का सूत्र में कहे गए 'द्रव्येषु' बहुवचन के निर्देश से निराकरण कर दिया गया है अर्थात् अकेला आत्मा ही तत्त्व नहीं है। किन्तु अनन्तानन्त आत्मायें हैं तथा आत्माओं के अतिरिक्त पुद्गल, कालाणु आदि भी अनेक द्रव्य जगत् में विद्यमान हैं। प्रमाणों से उन द्रव्यों की सिद्धि कर दी गई है। बौद्ध कहते हैं कि सबको जानने वाला सर्वज्ञ भी वर्तमान काल की विद्यमान पर्यायों में ही ज्ञानवान है; पर्याय को ही जानने वाला है। किन्तु अविद्यमान भूत, भविष्यत्काल की पर्यायों को अथवा अनादि, अनन्त, अन्वित द्रव्यों को वह सर्वज्ञ नहीं जानता है। क्योंकि द्रव्यतत्त्व तो मूल ज्ञानके अव्यवहित पूर्वकाल में विद्यमान नहीं है। इस प्रकार बौद्धों के कथन का भी सूत्र में पर्यायेषु' बहुवचनान्तपद का प्रयोग करने
SR No.004287
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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