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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक * 350 'बाध्यबाधकमावस्याप्यबाधेनिष्टसाधनं / स्वान्योपगमतः सिद्ध्येन्नेत्यसावपि तात्त्विकम् // 8 // न हि बाध्यबाधकभावादेरनिष्टस्याबाधनं स्वतः सर्वेषां प्रतिभासते, विप्रतिपत्तावभावप्रसंगात् / संविन्मात्रप्रतिभासनमेव तत्प्रतिभासनमिति चेत् न, तस्यासिद्धत्वात् / परतो बाधकादनिष्टस्य बाधनमिति चेत् सिद्धस्तर्हि बाध्यबाधकभावः इति तन्निराकरणप्रकरणसंबंध प्रलापमानं / संवृत्त्या अनिष्टस्य बाधनाददोष इति चेत् तर्हि तत्त्वतो न वा बाध्यबाधकभावस्य बाधनमिति दोष एव। पराभ्युपगमात् तद्बाधनमिति चेत् तस्य सांवृतत्वे दोषस्य तदवस्थत्वात् / पारमार्थिकत्वेपि तदनतिक्रम एवेति सर्वथा बाध्यबाधकभावाभावे तत्त्वतो नानिष्टबाधनमनुपपन्नम्॥ ___ बाध्य-बाधक भाव के अबाधित होने पर ही अनिष्टतत्त्व की सिद्धि हो सकती है। बाध्य (असत्य ज्ञान और ज्ञेय) बाधक (समीचीन ज्ञान और ज्ञेय) दोनों के अभाव में भी अनिष्ट तत्त्व में बाधा कैसे दी जा सकेगी ? केवल स्व-पर के स्वीकार कर लेने मात्र से तो अनिष्ट तत्त्व में बाधा सिद्ध नहीं हो सकती अत: वह बाध्य-बाधक भाव या अनिष्ट तत्त्व की बाधा करना भी तात्त्विक है॥८॥ अर्थात् अनिष्टतत्त्व या बाध्यबाधक भाव के परमार्थभूत होने पर स्व इष्ट तत्त्व की सिद्धि कर सकते हैं, अन्यथा नहीं। संवेदनाद्वैतवादियों को अनिष्ट ऐसे बाध्य-बाधक आदि भाव की बाधा स्वत: सभी को प्रतिभासित नहीं होती है, क्योंकि सभी को स्वतः बाधा का प्रतिभास हो जाता तो विवाद होने का प्रसंग भी नहीं आता। “केवल शुद्ध संवेदन का ज्ञान होना ही उस अनिष्ट बाध्य-बाधक आदि की बाधा का प्रतिभास है" -ऐसा कहना उचित नहीं है, क्योंकि अकेले उस शुद्ध संवेदन के प्रतिभास की सिद्धि नहीं है। दूसरों के द्वारा स्वीकृत बाधक भाव से अनिष्ट की बाधन है-ऐसा कहते हो तो बाध्य-बाधक भाव सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार बाध्य-बाधक भाव के खण्डन करने के प्रकरण का सम्बन्ध करना प्रलाप मात्र है। यदि पूर्व के समान संवृत्ति (व्यवहार) रूप कल्पना से अनिष्ट तत्त्व की बाधा हो जाने के कारण उक्त दोष नहीं आते हैं-ऐसा कहोगे तो वास्तव रूप से बाध्य-बाधक भाव के बाधा नहीं हो सकती अत: दोष वैसे का वैसा रहता ही है अर्थात् वास्तविक रूप से बाध्य-बाधक भाव मानना पड़ेगा। यदि दूसरे वादियों के स्वीकृत किये बाध्य-बाधक भाव से उसकी बाधा करोगे तब तो उस दूसरों के स्वीकार को यदि कल्पित माना जायेगा तो वही दोष वैसे का वैसा अवस्थित रहेगा अर्थात् कल्पित बाध्य-बाधक भाव से अनिष्ट बाध्य-बाधक भाव की बाधा नहीं बाध्य-बाधक भाव को पारमार्थिक मान लेने पर भी दोषों का अतिक्रमण नहीं होता है। इसलिए, सर्वथा बाध्य-बाधक भाव के अभाव में वास्तविक रूप से अनिष्ट तत्त्व की बाधा करना किसी प्रकार भी सिद्ध नहीं है। 1. बाध्य-बाधक भावस्याप्यभावेनिष्टबाधनं / माणिकचन्द जी की प्रति में ऐसा पाठ है। परन्तु मूल पाठ शुद्ध प्रतीत होता है।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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