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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक 262 नयवाक्यं ? सकलादेशः प्रमाणवाक्यं विकलादेशो नयवाक्यमित्युक्तं / कः पुनः सकलादेश: को वा विकलादेशः ? अनेकात्मकस्य वस्तुनः प्रतिपादनं सकलादेशः, एकधर्मात्मकवस्तुकथनं विकलादेश इत्येके, तेषां सप्तविधप्रमाणनयवाक्यविरोधः / सत्त्वासत्त्वावक्तव्यवचनानां सैकैकधर्मात्मजीवादिवस्तुप्रतिपादनप्रमाणानां सर्वदा विकलादेशत्वेन यथावाक्यतानुषंगात् क्रमार्पितोभयसदवक्तव्यासदवक्तव्योभयावक्तव्यवचनानां वानेकधर्मात्मकवस्तुप्रकाशिनां सदा सकलादेशत्वेन प्रमाणवाक्यतापत्तेः / न च त्रीण्येव नयवाक्यानि चत्वार्येव प्रमाणवाक्यानीति युक्तं सिद्धान्तविरोधात् / धर्मिमात्रवचनं सकलादेशः धर्ममात्रकथनं तु विकलादेश इत्यप्यसारं, सत्त्वाद्यन्यतमेनापि धर्मेणाविशेषितस्य धर्मिणो वचनासंभवात्। धर्ममात्रस्य क्वचिद्धर्मिण्यवर्तमानस्य वक्तुमशक्ते: प्रत्येक पद और वाक्य के साथ जोड़ लेना चाहिए। अथवा वस्तु की सिद्धि के लिए अर्थापत्ति के द्वारा गम्यमान और शास्त्रों के द्वारा श्रूयमाण शब्दान्तर (स्यात् पद का) प्रयोग नहीं भी किया हो तो भी प्रत्येक पद में लगाना चाहिए। शंका : प्रमाण वाक्य क्या है? और नय वाक्य क्या है ? समाधान : सकलादेश तो प्रमाण वाक्य है और विकलादेश नय वाक्य है। शंका : सकलादेश क्या है ? और विकलादेश क्या है ? समाधान : अनेक धर्मों के साथ तादात्म्य सम्बन्ध वाली वस्तु का कथन करना, प्रतिपादन करना सकलादेश है और अनेक धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म का (एक धर्मात्मक वस्तु का) कथन करना विकलादेश हैं। ऐसा कोई कहते हैं। इस सम्बन्ध में जैनाचार्य कहते हैं कि उनके यहाँ सात प्रकार के प्रमाण वाक्य और सात प्रकार के नय वाक्य बोलने का विरोध आयेगा क्योंकि एक-एक धर्म स्वरूप जीवादि वस्तु के प्रतिपादन करने में तत्पर सत्त्व, असत्त्व, अवक्तव्य वचनों के सर्वदा विकलादेशी होने के कारण नय के वाक्यपने का प्रसंग आयेगा तथा क्रमार्पित उभय, अस्त्यवक्तव्य, नास्त्यवक्तव्य और अस्ति नास्त्यवक्तव्य ये चार वाक्य सदा अनेक धर्मात्मक वस्तु के प्रकाशक हैं अतः सकलादेश होने के कारण इनके प्रमाण वाक्यता का प्रसंग आयेगा परन्तु अस्ति, नास्ति और अवक्तव्य ये तीन नय वाक्य हैं और अस्ति नास्ति, अस्त्यवक्तव्य, नास्त्यवक्तव्य, अस्ति नास्त्यवक्तव्य ये चार प्रमाण वाक्य हैं, यह नियम करना युक्तिसंगत नहीं है क्योंकि ऐसा कहने पर सिद्धान्त से विरोध आता है अर्थात्-जैन सिद्धान्तानुसार सातों ही नय वाक्य हैं और सातों ही प्रमाण वाक्य हैं अत: सकलादेश और विकलादेश का पूर्वोक्त लक्षण लक्षणाभास है। केवल धर्मी का कथन करने वाला वाक्य सकलादेश है और केवल धर्म का कथन करना विकलादेश है। इस प्रकार कहना भी असार (सार रहित) है क्योंकि सत्त्व, असत्त्व आदि अनेक धर्मों में से किसी एक धर्म के विशेषण के बिना धर्मी का कथन करना संभव नहीं है। सम्पूर्ण धर्मों से रहित शुद्ध धर्मी का कथन करना शक्य नहीं है। किसी न किसी धर्म से युक्त ही धर्मी का कथन होता है। इसी प्रकार किसी भी धर्म से रहित (सर्व धर्मों से रहित) किसी भी धर्मी में नही रहने वाले धर्म मात्र का कथन करना भी शक्य नहीं है।
SR No.004285
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2010
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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