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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-३०५ 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राण्येव मोक्षमार्ग' इत्यवधारणं हि कार्यमसाधारणकारणनिर्देशादेवान्यथा तदघटनात् / तानि मोक्षमार्ग एवेति तु नावधारणं कर्त्तव्यं / तेषां स्वर्गाद्यभ्युदयमार्गत्वविरोधात् / न च तान्यभ्युदयमार्गो नेति शक्यं वक्तुं, सद्दर्शनादेः स्वर्गादिप्राप्तिश्रवणात्। प्रकर्षपर्यन्तप्राप्तानि तानि नाभ्युदयमार्ग इति चेत्, सिद्धं तापकृष्टानां तेषामभ्युदयमार्गत्वं, इति नोत्तरावधारणं न्याय्यं व्यवहारात् / निश्चयनयात् तूभयावधारणमपीष्टमेव, अनन्तरसमयनिर्वाणजननसमर्थानामेव सद्दर्शनादीनां मोक्षमार्गत्वोपपत्ते: परेषामनुकूलमार्गताव्यवस्थानात्। एतेन मोक्षस्यैव मार्गो मोक्षस्य मार्ग एवेत्युभयावधारणमिष्टं प्रत्यायनीयम्। पूर्वावधारणेऽप्यत्र तपो मोक्षस्य कारणम् / न स्यादिति न मन्तव्यं तस्य चर्यात्मकत्वतः // 40 // न ह्यसाधारणकारणाभिधित्सायामपि व्यवहारनयात् सम्यग्दर्शनादीन्येव मोक्षमार्ग- . इत्यवधारणं श्रेयस्तपसो मोक्षमार्गत्वाभावप्रसंगात् / न च तपो मोक्षस्यासाधारणकारणं न भवति, . इस सूत्र में असाधारण कारण का निर्देश होने से 'सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र ही मोक्षमार्ग है', ऐसी अवधारणा करनी चाहिए क्योंकि अन्यथा- सम्यग्दर्शन आदि के अभाव में मोक्षमार्ग की उत्पत्ति नहीं होती। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र ये मोक्ष के ही मार्ग हैं, ऐसी अवधारणा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इनके अभ्युदय का मार्गत्व भी विरोधी नहीं है अर्थात् ये सम्यग्दर्शनादि स्वर्गादि अभ्युदय के भी कारण हैं। ये सम्यग्दर्शनादि स्वर्गादि अभ्युदय के कारण नहीं हैं ऐसा भी नहीं कह सकते क्योंकि आगम में सम्यग्दर्शनादि से स्वर्गादि की प्राप्ति सुनी जाती है। यदि कहो कि ‘परम उत्कृष्टता को प्राप्त सम्यग्दर्शन आदि अभ्युदय की प्राप्ति में कारण नहीं हैं तो इस कथन से यह सिद्ध होता है कि जघन्य सम्यग्दर्शनादि स्वर्गादि अभ्युदय के कारण हैं। अतः सम्यग्दर्शनादि मोक्ष के ही कारण हैं- ऐसी अवधारणा करना व्यवहार नय से ठीक नहीं है। परन्तु निश्चय नय से दोनों ही अवधारणा इष्ट है- क्योंकि अनन्तर समय (सम्यग्दर्शनादि की परिपूर्णता के अनन्तर) निर्वाणजनन में समर्थ सम्यग्दर्शन आदि के ही मोक्षमार्गत्व उत्पन्न होता है; दूसरों के अनुकूल मार्गता की व्यवस्था न होने से। अर्थात् ये अभ्युदय के भी कारण हैं, उन के अनुकूल मार्ग की व्यवस्था होने से। इससे दोनों प्रकार से अवधारणा होती है कि सम्यग्दर्शनादि ही मोक्ष. के मार्ग हैं वा सम्यग्दर्शनादि मोक्ष के ही मार्ग हैं। निश्चयनय से दोनों ही अवधारणाएँ ठीक हैं, ऐसा जानना चाहिए, विश्वास करना चाहिए। चारित्रात्मक तप मोक्ष का कारण है मोक्षमार्ग में पूर्व में अवधारणा करने पर तप मोक्ष का कारण नहीं होगा, ऐसी शंका भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि तप चारित्रात्मक ही है।॥४०॥ . प्रश्न - सम्यग्दर्शन आदि के असाधारण कारण की स्वीकारता में भी “व्यवहारनय से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ही मोक्ष की प्राप्ति के उपाय हैं" ऐसी अवधारणा (निश्चय) करना श्रेय
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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