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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिक- 264 वा प्रमाणसिद्धं निःश्रेयसमपडवीत, अन्यत्र प्रलापमात्राभिधायिनो नास्तिकात् / कुतस्तर्हि प्रमाणात्तन्निश्शीयत इति चेत् परोक्षमपि निर्वाणमागमात्संप्रतीयते। निर्बाधाद्भाविसूर्यादिग्रहणाकारभेदवत् // 253 // __परोक्षोऽपि हि मोक्षोऽस्मादृशामागमात्तज्जैः संप्रतीयते / यथा सांवत्सरैः सूर्यादिग्रहणाकारविशेषस्तस्य निर्बाधत्वात् / न हि देशकालनरांतरापेक्षयापि बाधातो निर्गतोयमागमो न भवति, प्रत्यक्षादेर्बाधकस्य विचार्यमाणस्यासंभवात् / नापि निर्बाधस्याप्रमाणत्वमास्थातुं युक्तं, प्रत्यक्षादेरप्यप्रमाणत्वानुषक्तेः। सूर्यादिग्रहणस्यानुमानात्प्रतीयमानत्वाद्विषमोयमुपन्यास इति चेत् न / सूत्र' ग्रन्थ के सुनने का अधिकार नहीं है। तथा व्यर्थ की बकवाद करने वाले नास्तिक के अतिरिक्त ऐसा कौन मूर्ख प्राणी होगा जो प्रमाणसिद्ध मोक्ष का अपह्रव (लोप) करे अर्थात् मूर्ख को छोड़कर विचारशील पुरुष मोक्ष का निषेध नहीं कर सकते। आगम प्रमाण से मोक्ष की सिद्धि ____शंका-तब तो किस प्रमाण से मोक्ष का निश्चय किया जाता है? उत्तर- परोक्षभूत मोक्ष का भी निर्बाध आगम प्रमाण से निर्णय कर लिया जाता है, जैसे भविष्य काल में होने वाले सूर्य आदि ग्रहण और इनके आकारभेद का ज्योतिष शास्त्र से निश्चय कर लिया जाता है।।२५३॥ अल्प बुद्धि वाले हम लोगों को मोक्ष अत्यन्त परोक्ष है फिर भी आप्तकथित आगम को जानने वाले पुरुषों के द्वारा आगम से मोक्ष का निश्चय कर लिया जाता है। जैसे अनेक वर्षों की आगे पीछे की बातों को बताने वाले ज्योतिष विद्या के पारगामियों के द्वारा सूर्यादि ग्रहण, उनका आकार (अल्पग्रासी, सर्वग्रासी, पूर्वदिशा से या पश्चिम दिशा से राहु, केतु के) आदि विशेष भेद जान लिया जाता है। क्योंकि यह ज्योतिषशास्त्र बाधा रहित होने से आगम प्रमाण रूप है। अन्य देश, भिन्न काल आदि की अपेक्षा इसमें बाधा आती है- ऐसा भी कहना उचित नहीं है। क्योंकि यह आगम बाधा से रहित है। प्रत्यक्ष, अनुमान आदि से बाधक आगमप्रमाण नहीं होता है। इस ज्योतिषशास्त्र का विचार करने पर प्रत्यक्ष, अनुमानादि बाधा की असंभवता है। तथा जो प्रत्यक्ष अनुमानादि प्रमाणों से निर्बाध है उसको अप्रमाण मानना युक्त नहीं है। यदि प्रत्यक्षादि प्रमाणों से अबाधित आगम को अप्रमाण माना जायेगा तो प्रत्यक्ष अनुमानादि प्रमाणों के अप्रमाणत्व का प्रसंग आयेगा। शंकाकार का यह कहना भी कि सूर्य और चन्द्रमा के ग्रहणों का अनुमान ज्ञान से निश्चय कर लिया जाता है परन्तु मोक्ष का निर्णय आगम के सिवाय अन्य प्रमाणों से नहीं होता है; इसलिए सूर्य, चन्द्रमा के ग्रहण का दृष्टान्त विषम है, उचित नहीं है। क्योंकि सूर्य, चन्द्र के ग्रहण के आकार विशेष को जानने के लिए अविनाभावी हेतु का अभाव होने से किसी अनुमान प्रमाण का अवतार नहीं होता है। नियत दिशा, काल अथवा नियत प्रमाण या फलरूप से सूर्य, चन्द्रमा के ग्रहण के साथ व्याप्ति रखने वाले किसी पदार्थ को जानना शक्य नहीं है। अर्थात् सामान्य रूप से ग्रहण को अनुमान के द्वारा जान लेने पर भी उसके विशेष आकार-प्रकार को जानने के लिए आगम की शरण लेनी पड़ती है। किस काल में होगा, किस दिशा में होगा, इसका विश्वास भी आगम से ही होता है। अत: विशेष आकार को जानने रूप सूर्यादि ग्रहण का दृष्टान्त विषम नहीं है।
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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