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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-१५७ * सर्वथैकांतरूपेण सत्त्वस्य व्याप्त्यसिद्धितः। बहिरंतरनेकांतं तद्व्याप्नोति तथेक्षणात् / / 149 // द्रव्यार्थिकनयादनाद्यंतः पुरुषः सत्त्वात् पृथिव्यादितत्त्ववदित्यत्र न हेतोरनैकांतिकत्वं प्रतिक्षणविनश्चरे क्वचिदपि विपक्षेऽनवतारात् / कुंभादिभिः पर्यायैरनेकांत इति चेन्न / तेषां नश्वरकांतत्वाभावात् / तेऽपि हि नैकांतनाशिनः, कथंचिन्नित्यद्रव्यतादात्म्यादिति स्याद्वादिनां दर्शनं / "नित्यं तत्प्रत्यभिज्ञानान्नाकस्मात्तदविच्छिदा। क्षणिकं कालभेदात्ते बुध्धसंचरदोषतः" इति वचनात् / नन्वेवं सर्वस्यानादिपर्यंततासादिपर्यंतताभ्यां व्याप्तत्वात् विरुद्धता स्यादिति चेन्न / वस्तु अनेकान्तात्मक है ___ सर्वथा एकान्त रूप से नित्य वा अनित्य धर्म के साथ सत्त्व हेतु की व्याप्ति सिद्ध नहीं है। घट-पट आदि बाह्य पुद्गल पदार्थ और ज्ञान, इच्छा, सुखानुभव आदि से युक्त आत्मा रूप अंतरंग पदार्थ में स्थित सत्त्व हेतु नित्य, अनित्य आदि अनेकान्त धर्मों के साथ व्याप्ति रखता है। अर्थात् उत्पाद व्यय और ध्रुवात्मक पदार्थ ही सत्त्व है। उत्पाद आदि एकान्त सत्त्व नहीं है। क्योंकि अनेकान्तात्मक (अनेक धर्मात्मक) वस्तु ही दृष्टिगोचर हो रही है, अनुभव में आ रही है॥१४९ / / ___ वस्तु के नित्य अंश को ग्रहण करने वाले द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा पुरुष (आत्मा) अनादि अनन्त है- क्योंकि 'सत्त्व' है। जो-जो सत्त्व होते हैं वे अनादि अनन्त होते हैं- जैसे पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु आदि चार भूत सत्त्व होने से अनादि अनन्त हैं। यहाँ आत्मा को अनादि अनन्त सिद्ध करने के लिए अनुमान में दिया गया 'सत्त्व' हेतु अनेकान्त हेत्वाभास भी नहीं है। क्योंकि बौद्धों के द्वारा कल्पित सर्वथा निरन्वयनाश होने वाले पदार्थ में सत्त्व हेतु नहीं रहता है। क्षणक्षयी विपक्ष पदार्थ में कहीं भी सत्त्व हेतु का अवतार (अस्तित्व) नहीं है। अत: यह सत्त्व हेतु अनेकान्त हेत्वाभास नहीं है। ___शंका- घटादि पदार्थ अनादि-अनन्त नहीं हैं परन्तु सत्ता रूप हैं- अत: घटादि पर्यायों के द्वारा 'सत्त्व' हेतु अनैकान्तिक हेत्वाभास हो जाता है? उत्तर- ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि वे घटादि पदार्थ सर्वथा एकान्त रूप से निरन्वय नाश को प्राप्त नहीं होते हैं। क्योंकि वे घट-पटादिक भी कथंचित् नित्यावस्थित पुद्गल द्रव्य के साथ तादात्म्य सम्बन्ध रखने वाले होने से नित्य हैं- ऐसा स्याद्वादियों का दर्शन (सिद्धान्त) है। श्री समन्तभद्र स्वामी ने भी देवागम स्तोत्र में कहा है कि- हे भगवन् ! तेरे मन में सम्पूर्ण जीवादि पदार्थ कथंचित् नित्य हैं। क्योंकि 'यह वही है' इस प्रकार प्रत्यभिज्ञान का विषय है। प्रत्यभिज्ञान अकस्मात् (बिना कारण) नहीं होता है। अन्वय का (द्रव्य का) सर्वथा विच्छेद नहीं होना ही प्रत्यभिज्ञान का कारण है। अथवा द्रव्य रूप से मध्य में व्यवधान नहीं होने के कारण ही 'यह वही है ऐसा एकत्व प्रत्यभिज्ञान का विषय होता है। यदि प्रत्यभिज्ञान का विषय व्यवच्छेद रहित नित्य पदार्थ नहीं माना जायेगा तो बुद्धि का संचार नहीं होगा। अर्थात् पूर्व ज्ञान का सर्वथा नाश हो जाने से यह वही है' ऐसा ज्ञान नहीं हो सकेगा। कालभेद से वे पदार्थ क्षणिक हैं। पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा पदार्थ क्षणिक हैं। यदि पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा क्षणिक नहीं माना
SR No.004284
Book TitleTattvarthashloakvartikalankar Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji
PublisherSuparshvamati Mataji
Publication Year2007
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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