SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संचार हुआ और उसने उठा लिया तथा लाकर रानी को दे दिया रानी उस पुत्र को गोद में बैठाकर अत्यधिक प्रसन्न हुई। मन्त्री ने राजा से निवेदन किया कि नगर में चलकर रानी को गूढगर्भवती घोषित किया जाए और पुत्रोत्सव मनाया जाए / मन्त्री की सम्मति के अनुसार राजा ने पुत्रोत्सव सम्पन्न किया। सिंह ने उस पुत्र का नाम मुंज रखा। मुंज ने वयस्क होकर थोड़े ही दिनों में सकल शास्त्र और कलाओं का अध्ययन कर लिया.। तदनन्तर महाराज ने रत्नावली नामक कन्या के साथ उसका विवाह कर दिया। कुछ दिनों के अनन्तर महाराज सिंह की रानी ने गर्भ धारण किया और दशवें माह में एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम सिंहल (सिन्धुराज) रखा गया। इस पुत्र का भी जन्मोत्सव सम्पन्न किया गया तथा वयस्क होने पर मृगावती नामक कन्या से विवाह कर दिया गया। मृगावती कुछ दिनों में गर्भवती हुई। शुभ मुहूर्त में उसने दो पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें ज्येष्ठ का नाम शुभचन्द्र और कनिष्ठ का नाम भर्तृहरि रखा गया। बचपन से ही इन बालकों का चित्त तत्त्वज्ञान की ओर विशेष रूप से आकृष्ट था। अतएव वय प्राप्त होने पर तत्त्वज्ञान में अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली। एक दिन मेघों के पटल को परिवर्तित होते हुए देखकर सिंह को वैराग्य हो गया और उसने मुंज एवं सिंहल को राजनीति सम्बन्धी शिक्षा देकर जिनदीक्षा ग्रहण कर ली। राजा मुंज अपने भाई के साथ सुखपूर्वक राज्य करने लगा। एक दिन मुंज वनक्रीड़ा से लौट रहा था कि उसने मार्ग में एक तेली को कन्धे पर कुदाल रखे हुए खड़े देखा, उसे गर्वोन्मत्त देखकर मुंज ने पूछा - इस तरह क्यों खड़े हो ? उसने कहा - मैंने एक अपूर्व विद्या सिद्ध की है, जिसके प्रभाव से मुझमें इतनी शक्ति है कि मुझे कोई परास्त नहीं कर सकता। यदि आपको विश्वास न हो, तो अपने किसी सामन्त को मेरे इस लौहदण्ड को उखाड़ने का आदेश दीजिए। इतना कहकर उसने लौहदण्ड भूमि में गाड़ दिया। संकेत पाते ही सभी सामन्त उस लौहदण्ड को उखाड़ने में प्रवृत्त हुए, पर किसी ने उस लौहदण्ड को उखाड़ने में सफलता प्राप्त नहीं की। सामन्तों की इस असमर्थता को देखकर शुभचन्द्र और भर्तृहरि ने मुंज से निवेदन किया, कि यदि आदेश हो तो हम दोनों इस लौहदण्ड को उखाड़ सकते हैं। मुंज ने उन दोनों बालकों को समझाया, पर जब अधिक आग्रह देखा तो उसने लौहदण्ड उखाड़ने का आदेश दे दिया। उन दोनों बालकों ने चोटी के बालों का फन्दा लगाकर देखते-देखते एक ही झटके में लौहदण्ड को निकाल फेंका। चारों ओर से धन्य-धन्य की ध्वनि गूंज उठी / तैली निर्मद होकर अपने घर चला गया। बालकों के इस अपूर्व बल को देखकर मुंज आश्चर्यचकित हो गया और वह सोचने लगा कि ये बालक अपूर्व शक्तिशाली हैं और जब ये बड़े हो जाएंगे, तो किसी भी क्षण मुझे राज्यसिंहासन से च्युत कर देंगे, अतएव इनको किसी उपाय से मृत्यु के मुख में पहुँचा देना ही राजनीतिज्ञता है। उसने मन्त्री को बुलाकर अपने विचार प्रकट किये और कहा कि शीघ्र ही इन दोनों का वध हो जाना चाहिए। मन्त्री ने राजा को पूर्णतया समझाने का प्रयास
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy