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________________ जैसे विशाल ग्रन्थ का अध्ययन कर लाभ नहीं ले सकते, इससे उनके लाभ हो। इसमें व्दादशभावना, रत्नत्रय, महाव्रत, समिति, गुप्ति, ध्यान, ध्येय, ध्याता के भेद आदि का जो विवेचन किया गया है उस पर आचार्य शुभचन्द्र की छाप है। . पूर्ववर्ती महान आचार्यों द्वारा निरूपित योग को आगे उन्नत एवं विकसित करने वाले उपाध्याय यशोविजय थे। उन्होंने आचार्य हरिभद्र के ग्रन्थों पर विशेष रूप से कार्य किया / आचार्य शुभचन्द्र और हेमचन्द्र भी उनके योग विषयक साहित्यिक साधना के प्रेरक रहे। वे योगबिन्दु, ज्ञानार्णव और योगशास्त्र से विशेष प्रभावित थे। उन्होंने अनेक ग्रन्थों की रचना की जिनमें अध्यात्मसार और अध्यात्मोपनिषद मुख्य हैं। उपाध्याय यशो विजय का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य उनके द्वारा पातंजलयोगसूत्र के कुछ सूत्रों की जैनदृष्टि से व्याख्या है। उन्होंने अपनी रचना में योगसूत्र वर्णित समाधि और सिद्धान्तसम्मत ध्यान की बड़ी सुन्दर व्याख्या की है। आगे चलकर संस्कृत, गुजराती आदि भाषाओं में और भी योगविषयक रचनाएँ हुई जो ध्यान, ध्यानपद्धति, ध्यानसाधना के लिए अपेक्षित वातावरण तथा ध्यान के अनुरुप मनोभूमि प्राप्त करने के लिए कषाय विवर्जन आदि के प्रतिपादन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। आचार्य बुद्धिसागर सूरि ने कर्मयोगविषयक ग्रन्थ में आसक्तभाव से कर्म न करने का मार्गदर्शन दिया। आसक्ति वर्जन की जो जैनदृष्टिसम्मत प्रेरणा उन्हें प्राप्त हुई। उसका बीज ज्ञानार्णव में पा सकते हैं। इसके साथ ही गीता की अनासक्ति कर्मयोग परक चिन्तनधारा का भी उस पर प्रभाव है। इस प्रकार आचार्य शुभचन्द्र एक गौरवशाली ज्ञान तथा साधना की परम्परा लेकर आए। अपनी योगानुभूतियों से उसे अनुप्राणित कर अभिनव उपलब्धियाँ अर्जित कीं। यह सब वाङ्मय में पूर्ववर्ती आचार्यों के चिन्तन और अपने साधना निष्णात अनुभवों से घटित हआ। जिसकी निष्पत्ति भारतीय योग के क्षेत्र में दीप्तिमान प्रेरक उपादान के रूप में हुई। उनका ग्रन्थ ज्ञानार्णव, जिसने आगे आने वाली विदानों की पीढियों को सतत प्रेरित किया, एक संबल प्रदान किया जो योग वाङ्मय के रूप में आज प्राप्त है। उस पर गहन अध्ययन और अन्वेषण की आवश्यकता है। 230
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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