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________________ छोड़ठो के लिए तत्पर हो गया था। किन्तु मेरे द्वितीय धार्मिक शिक्षा सहायक श्रीब्र. राकेशकुमार जी को इस कार्य का श्रेय है कि इस अपूर्ण कार्य को पूर्णता की ओर ले गये। अन्यथा मैं तो असहाय हो इस कार्यको समाप्तप्राय ही माठा चुकने की ओर ही था। आपके ही सहयोग हो ही इस शोध प्रबन्ध को शोध प्रबन्ध का रूप एवं भाषा को परिमार्जित करने के साथ कम्प्यूटरीकृत करने की जिम्मेदारी निवाही। उनके प्रति कृता होना स्वाभाविक ही है। मैं जिनका ऋण कमीचुकाने के लायक होपाऊंगाऐरोमेरे माता-पिता श्री भागचन्द्र जी एवं श्रीमती शीलरानी जैन का अनुग्रह जीवन में सदा रहा है। उनकी अनुकम्पा से ही मैं अध्यात्ममार्ग में अग्रसर हो सका। उनके प्रति विशेष रूप सेश्रद्धावनातहूँ। लगभग 14 वर्षों से अध्ययहाकाल में मुझेसमीप्रकार की सुविधाएँ प्रदान करने वाले एवं मेरीअनुकूलता का विशेष ध्यान रखनेवाले श्रीवर्णी दिगम्बरजैन गुरुकुल के संचालक एवं अधिष्ठाता प्रतिष्ठाचार्यज्येष्ठ मातातुल्यब्र. जिोशजीका मेंचिरकृतज्ञहूँ | आप हमारीधार्मिक शिक्षा के सहायक भी हैं। इस संस्था के प्रबन्धकों का सहयोग भी मैं करता हूँ। मुझेठोत्रमन्दता के कारण लेखन के लिए अनेक लोगों से सहयोग की अपेक्षा करनी पड़ी। मेरे सहपाठी भाई दर्शनाचार्यव्र. सुरेन्द्रकुमार जैन को भी याद करता हूँ। उनके प्रति मेरा विशेष स्टोहरहाहै। जो इस कार्य के दौरान और भी वृद्धिंगत हुआ है। इसी तरह मुझे दमोह निवासी डॉ. श्रीमती नीलम जैन का भी विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। उनके प्रति कृतज्ञता का भाव ज्ञापित करता हूँ। इस समय मुझे याद है कि मैं प्रस्तुत कार्य को करने में कितना साधनहीन था। यदि मुझे अनेक पुस्तकालयों एवं उनके प्रबन्धकों का सहयोग न मिला होता, तो यह कार्यकरपाना संभव ही नहीं था। मैंने अपहोकार्यके चलतेश्रीवर्गीदिग. जैन गुरुकुल, जबलपुर, श्रीपार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, श्रीसरस्वति भवना, आरा, प्राकृत साहित्य अकादमी, जयपुर, आचार्यशाळासागर संस्कृत महाविद्यालय, जयपुर, श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर, श्रीदिगम्बरजैन संस्थान, हस्तिनापुर एवं सर्वोदय जना विद्यापीठ, सागर आदिकेपुस्तकालयों के साथ दिगम्बर जैन मन्दिरोंसेजुड़े अनेक शास्त्रमण्डारों का भी उपयोग किया है। अत: इस शोध प्रबन्ध में उपयोग की गई पुस्तकों के माननीय लेखकों एवंपुस्तकालयों के प्रबन्धकत्ताओं का आभार अवश्य ही व्यक्त करना चाहूंगा। अन्य सहयोगियों में ब्र. राजेशजैन, गढ़ा, जबलपुर, 7. रवीन्द्रगैठा, कोटा, ब्रराजेशणैा 'वर्धमाता', सागर, ब्र. धर्मेन्द्रकुमार, उदयपुर, ब. विनोदकुमारजी, भिण्ड, ब्र. विनोदकुमार एवं ब्र. संतोषा दानापतिजबलपुर, ब्र. त्रिलोकचन्द्र तथा संयोगजैन (xvii)
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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