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________________ साधक सबसे पहले हृदय कमल में स्थित कर्णिका में इस पद की स्थापना करता है, तथा देव व दैत्यों से पूजित एवं वचन विलास की उत्पत्ति के अव्दितीय कारण, स्वर तथा व्यंजन से युक्त, पंचपरमेष्ठी के वाचक, मूर्धा में स्थित चन्द्रकला से झरने वाले अमृत के रस से आद्रित इस महातत्त्व, महाबीज, महामन्त्र, महापदस्वरूप ॐ को कुम्भक करके ध्याता है।' ॐ की साधना विभिन्न रंगों के साथ की जाती है। उनके विभिन्न वर्गों के साथ की जाने वाली साधना के विभिन्न फल भी निरूपित किये गए हैं। जैसे - श्वेत वर्ण वाले ॐ की साधना शान्ति एवं पुष्टि कारक के साथ कर्मों का क्षय करने वाली एवं मोक्ष को देने वाली होती है / पीले रंग के ॐ का जपया ध्यान करने से ज्ञान तन्तुओं को सक्रियता प्राप्त होती है। वशीकरण में लाल रंग के ॐ का ध्यान किया जाता है। नीले रंग के ॐ का ध्यान करने से शान्ति तथा श्याम वर्ण के ध्यान से कष्टसहिष्णु बनने की शक्ति प्राप्त होती है। इस प्रणव ॐ का ध्यान सांसारिक वैभव एवं सुखों के साथ-साथ मोक्ष को भी देने वाला होता है। इसीलिए इसे प्रत्येक अवस्था में ध्यातव्य माना जाता है। 2. पदध्यान - जिस तरह ज्ञानार्णव में बीजाक्षरों के ध्यान के लिए पदस्थ ध्यान में स्वीकार किया गया है उसी तरह पदध्यान को भी पदस्थध्यान में स्वीकार किया गया है / इसमें प्रमुख रूप से महामन्त्र के वाचक पाँच पदों को या इससे सम्बन्धित अन्य पदों को भी ध्यान का विषय बनाने के योग्य समझा गया है। "णमो अरहताणं' यह सात अक्षरों का पद ध्यान करने के लिए जैन ध्यानयोग परम्परा में स्वीकार किया गया है। आचार्य शभचन्द्र ने भी उसी के अनुसार इसके ध्यान की विधि का प्ररूपण किया है। मन्त्रशास्त्रों के परामर्श के अनुसार इसे श्वेत रंग के साथ ध्यान करने योग्य कहा गया है। इससे शान्ति, समता, शुभ्रता एवं सात्त्विकता आदि की प्राप्ति होती है। 'जो प्राणी इस संसार रूपी अग्नि से दुखी हैं उन्हें इस पद का ध्यान करना चाहिए' ऐसा सुझाव आचार्य शुभचन्द्र ने दिया है। इस पद पर तत्त्वों की दृष्टि से विचार किया जाए तो 'ई' और 'र' अग्नि बीज हैं, 'अ' और 'ता' वायुबीज, 'ह', 'णमो' और 'ण' आकाश बीज / अर्थात् इस पद में अग्नि, . वायु और आकाश तीनों तत्त्व मौजूद हैं। अग्नि तत्त्व अशुभ कर्मों की निर्जरा करता है और 1. ज्ञानार्णव, 38/33-35. 2. योगशास्त्र, 8/31. 3. ॐकारं बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः / कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नमः / / 4. ज्ञानार्णव, 38/85. 164
SR No.004283
Book TitleBhartiya Yog Parampara aur Gnanarnav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendra Jain
PublisherDigambar Jain Trishala Mahila Mandal
Publication Year2004
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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